________________ गौरी रुद्रस्य सावित्री, ब्रह्मणः श्रीर्मुरद्विषः / शचीन्द्रस्य वे रत्ना-देवी दक्षात्मजा विधोः // 101 // तारा बृहस्पतेः स्वाहा, वह्नश्चेतोभुवो रतिः / धूमोर्णा श्राद्धदेवस्य, दारा एवं दिवौकसाम् // 102 सर्वेषां शस्त्रसम्बन्धः, सर्वेषां मोहजृम्भितम् / तदेवं देवसन्दोहो, न देवपदवीं स्पृशेत् // 103 // बुद्धस्यापि न देवत्वं, मोहाच्छ्न्याभिधायिनः / प्रमाणसिद्धे शून्यत्वे, शून्यवादकथा वृथा // 104 // प्रमाणस्यैव सत्त्वेन, न प्रमाणविवर्जिता / शून्यसिद्धिः परस्यापि, न स्वपक्षस्थितिः कथम् ? // 105 // सर्वथा सर्वभावेषु, क्षणिकत्वे प्रतिश्रुते / फलेन सह सम्बन्धः, साधकस्य कथं भवेत् // 106 // वधस्य वधको हेतुः, कथं क्षणिकवादिनः / स्मृतिश्च प्रत्यभिज्ञा च, व्यवहारकरी कथम् .. // 107 // निपत्य ददतो व्याघ्याः, स्वकायं कृमिसर्कुलम् / देयादेयविमूढस्य, दया बुद्धस्य कीदृशी // 108 // स्वजन्मकाल एवात्म-जनन्युदरदारिणः / मांसोपदेशदातुश्च, कथं शौद्धोदनेर्दया . // 109 // यो ज्ञानं प्रकृतेर्धर्म, भाषते स्म निरर्थकम् / निर्गुणो निष्क्रियो मूढः, स देवः कपिलः कथम् // 110 // आर्याविनायकस्कन्द-समीरणपुरस्सराः / निगद्यन्ते कथं देवाः, सर्वदोषनिकेतनम् // 111 // या पशुYथमश्नाति, स्वपुत्रं च वृषस्यति / श्रृङ्गादिभिजति जन्तून्, सा वन्द्याऽस्तु कथं नु गौः // 112 //