________________ ऊदन्तः कम्पने धूगण ऋदन्त आवृतौ वृगण् / ऋदन्तो जूण् वयोहानौ कान्तौ द्वौ चीक शीकण . // 354 // आमर्षणार्थों गान्तस्तु मार्गण् अन्वेषणार्थकः / चान्ता अर्चिण पूजायां पृचण् सम्पर्चनार्थकः // 355 // रिचण् वियोजनार्थे च प्रोक्तो वचण भाषणे। जान्तौ वृजैण् वर्जने च शौचालङ्कारयोजौण् // 356 // ठान्तः कठुण शोकार्थे थान्ताः कथण हिंसने / अथण् बन्धे च सन्दर्भे श्रन्थ ग्रन्थण दान्तकाः // 357 // छुदण् सन्दीपनेऽथार्दिण् हिंसायां भाषणे वदिए / आः सदण् गतौ प्रोक्तश्छदण् तु अपवारणे // 358 // धान्तः शुन्धिण शुद्धौ नान्तौ द्वौ पूंजने तु मानण् स्यात् / / श्रद्धाऽऽघाते तु तनूण् उपसर्गादेष दैर्ध्यार्थः // 359 // भान्तौ दृभैण भीतौ पान्ता आप्Mण तु लम्भनेऽथ तपिण् / दाहे तृपण प्रीणन इह सान्तो हिंसुण हिंसायाम् . // 360 // षान्ता मृषिण् तितिक्षायां जुषण् तु परितर्कणे / / स्यादसर्वोपयोगे तु शिषण अतिशये तु वः // 361 // धृषण् प्रसहने रान्त ईरण क्षेपेऽथ हान्तकौ / गर्हण विनिन्दार्थ: स्यात् मर्षणे तु षहण मतः // 362 // एवं पूर्णाश्चत्वारिंशद्पाधिका युजादिगणसर्वे / चतुःशती चतुरधिकाः स्युश्चुरादयो बहुलम् // 363 // अदन्ता अप्यनुक्ताः स्युस्तथा भ्वादिगणाष्टके / निवेशितास्ते सर्वेऽपि बहुलं स्युश्चुरादयः // 364 // अत्रैकाशीत्युत्तरनवशतसंयुक्सहस्र 1981 संख्याकाः / आर्यागीतिश्लोकैनवादिगणधातवो दृब्धाः // 365 // / 310