________________ दौर्बल्ये श्रथण भवेच्छेदण द्वैधीकृतौ गदण गर्ने / पदणि गतौ स्याद् दृष्ट्युपसंहारेऽन्धण् स्तनण् गर्ने // 342 // ध्वनण निनादे.स्तेनण् चौर्ये ऊनण् तु परिहाणे / दौर्बल्ये कृपण भवेत् रूपण रूपक्रियायां वै // 343 // क्षप लाभण प्रेरण इह भामण क्रोधेऽथ सान्त्वने सामण् / संग्रामणि संग्रामे गोमण् उपलेपने ख्यातः // 344 // स्तोमण् श्लाघायां स्यात् श्रामण आमन्त्रणे व्ययण / वित्तसमुत्सर्गाथै आक्षेपे स्वरण भेदे तु // 345 // छिद्रण कर्मसमाप्तौ पारण तीरण च वरण ईप्सायाम् / क्रीडायां तु कुमारण् शैथिल्ये कत्र गात्रण द्वौ // 346 // सूत्रण विमोचनार्थे चित्रण चित्रक्रियाकदाचिद्दष्टयोः / मूत्रण प्रस्रवणे स्यान्मिश्रण संपर्चनेऽथ दुर्बलतायाम् // 347 // शारण विक्रान्तौ द्वौ शुरणि वीरणि च सत्रणि तु / संदानार्थे ख्यातः पल्यूलण् लवनपवनार्थः // 348 // उपधारणे तु शीलण कलण तु संख्यानगमनयोः कालण् / वेलण् उपदेशार्थौ स्थूलणि परिवहणेऽथ गर्वणि तु // 349 // मानेऽथ विभजनेंऽशण मृषण क्षान्तौ पषण् अनुपसर्गः / अन्वेषणे गवेषण् आस्वादस्नेहयोस्तु रसण् // 350 // वासण उपसेवायां निवासण च्छादने रहुण् गमने / रहण त्यागे गृहणि ग्रहणेऽथो कल्कने चहण // 351 / / . विस्मापने तु कुहणि प्रेप्सायां स्पृहण महण पूजायाम् / रूक्षण पारुष्ये स्यादिति संपूर्णाश्चतुर्णवतिः // 352 // युजादिरुच्यते जान्तो युजण् संपर्चने मतः। . ईदन्ता मीण मतौ प्रीगण् तर्पणे लीण् द्रवीकृतौ // 353 // . 300