________________ आयूर्वः क्रन्देऽसौ पुषण धृतौ भूषणे भवेद्. भूषण / सान्ता ग्रसण ग्रहणे निवारणे त्रसण ताडने तु जसण् // 330 / कुत्सिण तु अवक्षेपे लसण तु शिल्पप्रयुञ्जने ख्यातः / भूषणवत् तसुण वसण् स्नेहच्छेदावहरणेषु // 331 // उत्क्षेपे ध्रसण भवेत् हान्तोऽर्हण पूजनेऽथ कान्तौ द्वौ / लोकृयुततर्क घान्तौ रघु लघु चान्तस्तु लोच छान्तस्तु // 332 // विछ जान्ता अजु तुजु पिजु लजु लुजु भजु टन्तकाः पट पुटश्रित् / लुट घट घटु तान्ताः स्यावृत थान्तः पुथ अथो दान्तः // 333 // नद धान्तो वृध पान्ताः कुप धूप गुप त्रयोऽथ शान्तौ द्वौ। .. दशु कुशु सान्तास्त्रसु पिसु कुसु दसु वान्तस्तु चीव हान्तस्तु // 334 // वह वृहु वल्ह अहु वहु महु सर्वेऽमी णितश्च भासार्थाः / / क्षान्तौ मोक्षण असने लक्षिण आलोचने हि षण्णवतिः // 335 // अथ दर्शयाम्यदन्तान् अङ्कण लक्षण इहाङ्गण पदे च / अन्वेषणे मृगणि वै सुख दुःखण तत्क्रियायां द्वौ ... // 336 // ब्लेष्कण तु दर्शनार्थेऽघण् पापकृतौ रचण् पुनर्यत्ने / सूचण पैशुन्यार्थे सभाजण प्रीतिसेवनयोः // 337 // भाजण पृथक्कृतौ स्यात्प्रकाशने लज लजुण् पुटण् सङ्गे। कूटण दाहे खोटण् क्षेपे पट वटण तु ग्रन्थे // 338 // खेटण अदनेऽथ वटुण विभाजने श्वठ शठण वचसि तथ्ये / दण्डण दण्डनिपाते तूणण् सङ्कोचने ख्यातः // 339 // वर्णण् विस्तृतिवर्णक्रियागुणाख्यासु गणण संख्याने / . पर्णण तु हरितभावे व्रणण वपुश्चूर्णने भिदि तु कर्णण् // 340 // कुण गुण केतण आमन्त्रणे गतौ वा पतण् तथा वातण् / सुखसेवनयोश्चार्थणि याञ्चायां कथण वाक्प्रबन्धार्थः // 341 // 308