________________ भक्षण अदने भ्रक्षण म्लेच्छे लक्षीण दर्शनाङ्कनयोः / यक्षिण पूजायां स्यात् त्र्यशीतिशतमित्यमी गदिताः // 318 // अथ लक्षिणपर्यन्ता अर्थविशेषे स्युरेष्वथादन्तः / ज्ञाण मारणादिषु नियोजनेऽप्युदन्तौ तु सहने च्युण // 319 // युणि तु जुगुप्सायामथ ऊदन्तो भूण मिश्रण ऋदन्तः / विज्ञाने गृणि भवेत्कान्ता आस्वादने तु रक लकण् द्वौ // 320 // बुक्कण भषणे प्रोक्ता गान्ता रग लगण रकसमौ लिगुण / चित्रीकरणे चान्ताः प्रलम्भने वाञ्चिण मुचण तु // 321 / / स्यान्मोचनेऽथ चर्चण अध्ययनेऽञ्चण विशेषण जान्तौ / अर्जण तु प्रतियत्ने भजण तु विश्राणने यन्ताः // 322 // घटण तु सङ्घातार्थे प्रतापने कुटिण चटयुतस्फूटण / / भेदे हिंसा इह णान्तस्तु निमीलने कणण // 323 // तान्तो यतण निकारोपस्कारार्थद्वये निरः शुद्धौ / / दान्तो विदिण निवासाख्यानार्थे चेतनेऽप्यथो षूदण // 324 // क्षरणेऽप्याङ: क्रन्दण सातत्ये ष्वदण भवति आस्वादे / आङ: सकर्मकोऽयं चुरादिकार्योऽथ मुदण संसर्गे . // 325 / / शब्दण स्यादुपसर्गाद्भाषाविष्कारयोर्मदिण तृप्तौ / धान्तः शृधण् प्रसहने नान्तः स्तम्भे मनिण् पान्तः // 326 // कृपण अवकल्कनार्थो भान्तः स्याज्जभुण नाशने मान्तः / रोगार्थेऽमण गन्तौ पूरण आप्यायनेऽथ चरण // 327 // निःशंसयेऽथ लान्ता विदारणे दलण बलि भलिण धातू / आभण्डनेऽथ वान्तौ दिविण् परे कूजनेऽथ दिवण् // 328 / / पीडायां शान्तः स्यात् पशण तु बन्धेऽथ षान्तकाः पशवत् / पषण अथ शक्तिबन्धे वृषिण विशब्दे भवेद् घुषण // 329 // 300