________________ इति सद्गुरुवाग्देवीप्रसादमासाद्य हर्षकुलविहिते / कविकल्पद्रुमनाम्नि ग्रन्थेऽयमपूरि पल्लवो दशमः // 366 // // 11 // सौत्रधातुप्रकाशनामैकादशः पल्लवः // नवादिभ्योऽतिरिक्ता ये सूत्रेष्वेवोपलक्षिताः / सुखज्ञानार्थमुच्यन्ते केऽपि ते सौत्रधातवः // 367 // कण्डूग् गात्रविनामे महीङ वृद्ध्यर्च्ययोर्हणीङ् रोषे / लज्जायामपि, मन्तु तु रोषार्थे वैमनस्येऽपि // 368 // असु मानसोपतापे वल्गु तु माधुर्यपूजयोः ख्यातः / वेङ् लाङ्, वेट्, लाट् धौत्र्येऽप्यस्वप्ने पूर्वभावेऽपि // 369 // अल्पार्थकुत्सयोलिट् लोट् दीप्तौ इरज इरस ईर्ष्याौँ / भिष्णज उपसेवायां भिषज् चिकित्सार्थ उरस ऐश्वर्ये // 370 // नन्द समृद्धौ कुषुभ क्षेपे संभूयस प्रभूतार्थे / . इयसेससौ तु धातू ईर्ष्यायां पुष्प सन्तोषे . // 371 // उषस प्रभातवाच्ये रेषा चित्रेऽथ पर्यसिति प्रसवे / वेला समयार्थे स्याच्चतरण गतावगद तन्त्रार्थः // 372 // तिरस तरण प्रसिद्धौ ठुवस तु परितापपरिचरणयो: स्यात् / कुसुभ क्षेपेऽथैला केला खेला विलासार्थाः // 373 // मेधा आशुग्रहणे मगध तु परिवेष्टने समर, युद्धे / सुख दुःख तत्क्रियायां विख्यातौ भुरण पुरण गतौ // 374 // भरण तु धारणपोषणयुद्धेष्वथ चुरण चौर्यचेतनयोः / ... इषध शरधारणार्थे तन्तस पम्पस तु दुःखार्थों // 375 // ... गद्गद् वाक्यस्खलने त्वरार्थकस्तुरण सपर पूजायाम् / पञ्चाशदमी कण्ड्वादयः परेऽनर्थका नोक्ताः // 376 // 311