________________ पुट मुटण चूर्णनार्थावाट्ट स्मिटण स्मृताववज्ञायाम् / लुण्टण स्तेये चोक्तो नटण भ्रंशे स्निटण स्नेहे // 294 // षट्ट स्फिटण प्रमये कीटण स्याद्वर्णने रुटण रोषे / घट्टण चलने खट्टण संवरणे स्फुटुण परिहासे // 295 // त्रुटिण च्छेदे कूटिण भवेदप्रमादेऽथ ठान्तकाः शुठुण् / शोषार्थे गुठुण स्याद्वेष्टन इह शुठण आलस्ये // 296 / / शठिण श्लाघायां स्यात् शठ श्वठण श्वठुण संस्करणगत्योः / डान्ताः पीडण गहने ईडण् स्तवने चडुण कोपे // 297 // ओलडुण क्षेपार्थे चुडुण च्छेदेऽथ भडुण कल्याणे / / परिहासे स्फुडुण भवेदुपसेवायां लडण ख्यातः // 298 // भेदे खड खडुण द्वौ कडुण स्यात्खण्डने च कुडुण इति / रक्षार्थे मडुण भवेद् भूषायां पिडुण सङ्घाते // 299 // वेष्टनरक्षणयोः स्याद् गुडुण जुडण् प्रेरणे तडण घाते / णान्तास्तु चूण तूणण कूर्णिण संकोचने आणण् दाने // 300 // जुडण इव चूर्ण वर्णण पूणण सङ्घातनेऽथ संपूर्तीः / तूणिण आशंसायां भ्रूणिण् तान्ताश्चितुण स्मृत्यांम् // 301 / / संवेदने चितिण स्यात् मुस्तण पूणणसमस्तथा कृतण / संशब्दनेऽथ गमने स्वर्त्तण वै अर्दने वस्तिण् // 302 // पुस्तण बुस्तण तु द्वावनादरेऽप्यादरेऽथ थान्ताः स्युः / पथुण गतौ प्रतिहर्षे श्रथण प्रक्षेपणे तु पृथण // 303 // . प्रथण प्रख्यानार्थे दान्ताः संचोदने चुदण धातुः / / छर्दण वमने गुर्दण निकेतने च्छदण संवरणे मिदुण स्नेहे धान्ताः संयमने वन्धयुग्वधण, वर्धण / छेदनपूरणयोः स्याद् हिंसायां बुधुण् अर्दने गन्धिण // 305 // - 304 // 304 //