________________ इति सद्गुरुवाग्देवीप्रसादमासाद्य हर्षकुलविहिते / कविकल्पद्रुमनाम्नि ग्रन्थेऽभूत्पल्लवोऽष्टमकः // 273 // ॥९॥ऋयादिगणप्रकाशो नवमः पल्लवः // आदावीदन्ताः षट् डुक्रीगंश् द्रव्यविनिमये प्रींगश् / तृप्त्यभिलाषे श्रींगश् पाके मींगश तु हिंसायाम् // 274 // वीश् वरणे श्रीश् भरणे आदन्तो ज्ञांश बोधन इदन्तौ / क्षिषश् हिंसायां स्यात् पिंगश बन्धेऽथ ऊदन्तौ // 275 // कूगश शब्दे द्रुगश् हिंसायां द्वावुदन्तको स्कुंगश् / आप्रवणेऽथो युंगश बन्धे डान्तो मृडश सुखने // 276 // ठान्तो हेठश् भूतप्रादुर्भावेऽथ दान्तमृदश् क्षोदे / थान्ता विलोडने स्यान्मन्थश् ग्रन्थश् तु भवति सन्दर्भार्थः // 277 // प्रतिहर्षणमोचनयोः श्रन्थश् स्यात् कुन्थंश क्लेशे / धान्तौ बन्धे बन्धंश् इह रोषे गुधश शान्तौ द्वौ // 278 // बाधे क्लिशौश कथितोऽशश धातुर्भोजने त्रयो भान्ताः / णभ तुभश हिंसनार्थी संचलने क्षुभश सप्त षान्ताः स्युः // 279 // मुषश स्तेये इषश तु आभीक्ष्ण्ये कुषश निष्कर्षे / पुषयुग् प्लुषश स्नेहनसेंचनयोः पूरणार्थौ च // 280 / / विषश वियोगे पुषश तु पुष्टौ वान्तस्तु खवश हेठशवत् / सान्तौ ध्रसूश उञ्छे ऋदन्तको वृङश सम्भक्तौ // 281 // हान्त उपादानार्थे ग्रहीश ऊदन्तकास्त्रयः पूगश् / पवने लूगश् छंदे स्याद् धूगश कम्पनेऽथ ईदन्ताः // 282 // रीश गमनरोषणयोलीश स्यात् श्लेषणे गतौ ल्वींश / व्लीश तु वरणार्थः स्यादादन्तौ ज्यांश हान्यर्थः // 283 // 303