________________ तृहौ तुंहौ स्तृहौ स्तूंहौत् हिंसायामुद्यमे वृहौत् / एकादशाधिकमभूच्छतं चान्तौ तु मोक्षणे // 252 // मुच्छूती क्षरणे तु स्यात् षिचीत् पान्तौ लिपीत तु / उपदेहेऽथ लुप्लुंती च्छेदने दान्तकं द्वयम् // 253 // विलुंती लाभार्थे परिघातार्थे खिदंत तान्तास्तु / छेदे कृतैत शान्तोऽवयवे तु पिशत मुचादिरष्टौ वृत् // 254 / / यन्तः कुटत कौटिल्ये उदन्तानि स्वरे वृंङत् / पुरीषोत्सर्जने गुंत ध्रुत् गतिस्थैर्ययोर्मतः // 255 // ऊदन्ताः कुङवत् कूङत् णूत् स्तवे धूत् विधूनने / जान्तः शब्दे गुजत् चान्तौ कुचत् सङ्कोचने स्मृतः // 256 // व्यचत् व्याजीकृतौ टान्तास्त्रुट च्छुट चुटत् छिदि / प्रतिघाते घुटत् श्लेषे पुटत् विकसने स्फुटत् // 257 // आक्षेपणमर्दनयोर्मुटत तुटत कलिकृतौ तथा ठान्तः / पुटसदृशो लुठत स्यादथ डान्ताः कृडत घसनार्थः // 258 // बाल्ये च कुडत कथितो जुटत्तु बन्धेऽथ गुडत रक्षायाम् / स्थुड लुड थुडत्तु संवृत्यर्था उत्सर्जने तु वुडत . // 259 // तुड तोडने तुडत मुडत् सङ्घाते मज्जने तु दुड हुडत / त्रुड णान्तश्चुणत च्छिदि पान्तः क्षेपे डिपत रान्ताः // 260 // स्फुरत स्फुरणे स्फुलत व्रजे च चुणवत् छुरत् गुरैति कृतौ / ऊनचत्वारिंशत्तु कुटादि नषष्टिः शतमखिलाः // 261 // इति सद्गुरुवाग्देवीप्रसादमासाद्य हर्षकुलविहिते / कविकल्पद्रुमनाम्नि ग्रन्थेऽभूत्पल्लवः षष्ठः // 262 // 301