________________ सुखने पृडत् मृडत द्वौ झान्तौ जत्तुि जर्जसम उद्झत / उत्सर्ग इह तु णान्ताः पुणत् शुभेऽथो मुणत्प्रतिज्ञाने // 240 // शब्दोपकरणयोश्च तु कुणत पृणत्प्रीणने मृणत हनने। ... द्रुणत कुटिलत्वगत्योश्च कुटिलतायां तुणत धातुः // 241 // घूण घूर्णत् भ्रमणार्थावथ तान्तो ग्रन्थहिंसयोस्तु चूतैत् / धान्तो विधत विधाने नान्तौ जन शुनत गमन इह दान्तौ // 242 // अवसादने तु षद्लँत् णुदंत तु प्रेरणेऽथ पान्तौ द्वौ / स्पर्श छुपंत् क्षिपींत तु णुदंतवनव तु फान्ताः स्युः // 243 // ऋफ ऋफत् हिंसायां रिफत युधादानयोश्च कथनेऽपि / दृफ हम्फत उत्क्लेशे गुफ गुम्फत ग्रथनके स्याताम् // 244 // तृफ तृम्फत तृप्त्यर्थो भान्ताः षड् पूरणे तु उभ उम्भत / शुभ शुम्भत शोभार्थौ ग्रन्थे तु दृभैत् विमोहने तु लुभत // 245 // रान्तास्तु कुरत शब्दे विलेखने क्षुरत खुरत तु च्छिदिव / संवेष्टने मुरत् स्यात् घुरत्तु भीमार्थशब्दयोः स्फुरत // 246 // स्फुरणेऽग्रगतौ तु पुरत दीप्त्यैश्वर्यार्थयोः सुरत् लान्ताः / स्फुलत स्फुरवत् हिलत तु हावकृतौ सिल शिलत उञ्छे // 247 // इलत क्षेपणगमनस्वप्नेषु चलत्तु विलसने किलत / श्वैत्यक्रीडनयोः स्यात्तिलत स्नेहे चिलत वसने // 248 // विलत वरणे णिलत् स्याद्गहनेऽथ श्लेषणे मिलत्प्रोक्तः / भेदन इह बिलत भवेत् शान्तास्तु रुशं रिशंत हिंसायाम् // 249 // गमने लिशंत विशंत प्रवेशनेऽथो मृशंत आम” / . अतिसर्जने दिशीत स्पृशंत संस्पर्श इह षान्ताः // 250 // मिषत स्पर्द्धऽथ कृषीत् विलेखने स्यात् ऋषैत् गतौ इषत / इच्छायां प्रीतिनिषेवणयोस्तु जुषैति अथ हान्ताः / // 251 // 300