________________ // 230 // धिवुट् गतावथो शान्तोऽशौटि व्याप्तो हि षान्तकः / प्रागल्भ्ये जिधृषाट् एकोनत्रिंशत्स्वादयो मताः इति सद्गुरुवाग्देवीप्रसादमासाद्य हर्षकुलविहिते / कविकल्पद्रुमनाम्नि ग्रन्थेऽभूत्पल्लवोऽत्र पञ्चमक: // 231 // . // 6 // तुदादिगणप्रकाशः षष्ठः पल्लवः // तुंदीत व्यथने प्रोक्त इदन्ता रित् पित् गतौ / क्षित निवासे च धित् स्याद्धारणेऽथ ऋदन्तकाः // 232 // मृत प्राणत्यागे व्यायामे पङ्त धुंङ्त तु स्थाने / टुङत स्यादादरे ऊदन्तः प्रेरणे 'घूत. // 233 // ऋदन्तौ कृत स्याद्विक्षेपे गृत निगरणे खान्तः / लिखत तु वर्णन्यासे चान्ताः स्युस्त्वचत संवरणे // 234 // जर्चत झर्चत परिभाषणे ऋचत संस्तुतावथ च्छेदे / ओव्रस्चौत छान्ताः षट् उछैद्विवासे विछत गमने // 235 // मिछत स्यादुत्क्लेशे जीप्सायां तु प्रछंत् उछुत उञ्छे / करणप्रलये मूर्ते भावेऽपि ऋछन्मतो जान्ताः // 236 // टुमस्जोंत तु शुद्ध्यर्थो जर्जत्तु परिभाषणे / सृजंत तु विसर्गार्थे धातुरुब्जत. आर्जवे // 237 // भुजोंत इति कौटिल्येऽथो ओलस्जैति ओलजैङ् / व्रीडार्थावोविजैति स्यात् साध्वसे कम्पनेऽपि च // 238 // . तथा रुजोंत भङ्गार्थः सङ्गे ष्वजिंत संमतः / भ्रस्जीत् पाकेऽथ डान्ताः स्युः कडत् मदे जुडत् गतौ // 239 // 299