________________ दान्तः क्लिदौच आर्द्रभावे जिमिदाच् स्नेहनार्थः / जिश्विदाच् मोचने चाथ गात्रप्रक्षरणे विदांच् // 208 // धान्ताः सप्त श्रुधंचं शोचे क्रुधंच कोपे क्षुधंच तु / बुभुक्षायामृधूच् वृद्धौ निष्पत्त्यर्थे षि—च वै / 209 // गृधूच अभिकाङ्क्षायां रधौच पाकहिंसयोः / यन्तो लुटच् विलोटेऽथ नव पान्ताः कुपच् क्रुधि // 210 // गुपच व्याकुलतायां डिपच क्षेपे तृपौच सौहित्ये / युप रुप लुप च विमोहे दृपौच मुदगर्वयोरुदितः // 211 // टपच तु समुच्छ्राये भान्ता णभ तुभच हिंसने स्याताम् / गाद्धर्ये लुभच क्षुभच तु संचलने षट् तु शान्ताः स्युः // 212 // कृशच तनुत्वे वृशच तु वरणे भ्रंशू भृशूच् अध: पतने / / कृशच श्लेषेऽथ नशौच अदर्शने षान्तका विभागे तु // 213 // प्युषच दुषंच वैकृत्ये जितृषच तु तृषि, प्लुषूच दाहार्थे / तुष्टौ तुषं हृषच द्वौं शुषंच शोषे रुषंच रोषे // 214 // आलिङ्गने श्लिषंच् स्यात् सान्ताः श्लेषे कुसच जसूच मोक्षे / प्युस पुसच विभागार्थौ यसूच प्रयत्ने मसैच परिणामे // 215 // विसच प्रेरणेऽसूच क्षेपणेऽथ तसू दसूच् / उपक्षयार्थौ स्तम्भे तु वसूच् मुसच खण्डने . // 216 // उत्सर्गे तु वुसच् मान्ता उपशान्तौ शमू दमूच् / भ्रमूंच अनवस्थाने क्षमौच सहने स्मृतः // 217 // श्रमूच खेदतपसोः काङ्क्षायां तु तमूच् मतः / क्लमूच् ग्लानौ हि दान्तस्तु मदैच् हर्षेऽष्टकं शमाम् // 218 // अक्लमूच् सप्तकं चैतत् हान्ता उद्गिरणे ष्णुहौच / जिघांसायां द्रुहौच प्रीतौ ष्णिहौच मुहौच मोहने // 219 // 29o.