________________ अक कुटिलगतौ ष्टकयुक् स्तक प्रतीघात इह हि तृप्तौ च / चक खान्तस्तु कखे स्याद् हसने यन्ता णट तु नटने // 165 // परिभाषणे तु वट भटं युग्मं जान्तः क्षजुङ् गतौ दाने / डान्ता गड सेचनके लड जिह्येन्मन्थनार्थः स्यात् // 166 // हेड इति वेष्टनार्थे णान्ताः कण फणयुतौ रण गतौ स्यात् / चण हिंसादाने च शण श्रण दानार्थको गान्तः // 167 / / लगे सङ्गे हुगे हगे षगे सगे ष्टगे स्थगे / आच्छादनेऽग अकवत् शङ्कायां तु रगे स्मृतः // 168 // अथ थान्तास्तु षट् प्रोक्ताः स्नथ क्नथयुत क्लथ / क्रथ हिंसार्थको धातुः प्रख्याने प्रथिष स्मृतः // 169 // व्यथिष भयचलनयोः स्यादथ दान्ताः ऋदुङ कदुङ युक् क्लदुङ् / वैक्लव्यार्थाः स्खदिष स्खदने परिमर्दने म्रदिष // 170 // ऊर्जने छद विख्यातो हर्षग्लपनयोर्मदै (षट्पदी) / नान्ताः ष्टनयुक् स्तन च ध्वनं शब्दे स्वन अवतंस इह चन तु / हिंसायां पान्तः ऋपि करुणायां रान्तको ज्वर तु रोगे // 171 / / जित्वरिष सम्भ्रमार्थे, लान्ताश्चल कम्पने ह्वल हल तु / चलनार्थीज्वल दीप्तौ च, सान्तकः प्रसिष विस्तारे // 172 // क्षान्तस्तु दक्षि हिंसागत्योः षष्टिर्घटदिरेकाढ्यः। सर्वे भ्वादिगणे स्युः सहस्रमेकं तथाऽष्टपञ्चाशत् // 173 // इति सद्गुरुवाग्देवीप्रसादमासाद्य हर्षकुलविहिते / कविकल्पद्रुमनाम्नि ग्रन्थेऽभूत्पल्लवो द्वितीयोऽयम् // 174 //