________________ प्रोक्ताश्चमू छमूयुग् जमू झमूश्रिग्जिमू च निघसार्थाः / भामि क्रोधे कान्तौ कमूङ् सहने क्षमौष्यथो यान्ताः // 107 // ओप्यायैङ् स्फायैङ् युग् वृद्धावूयैङ् तन्तुसन्ताने / क्नूयैङ् शब्दोन्दनयोस्तायङ् सन्तानपालनयोः // 108 // तयि णयि रक्षणगत्योर्दयि हिंसादहनयोश्च दानेऽपि / अयि वयि पयि मयि नयि चयि रयि गमनार्था अथो पूयैङ्॥ 109 // दुर्गन्धकविशरणयोः सूय॑यतावीर्य ईर्घ्य ईOौँ / हय हर्य गतिक्लान्त्योः शुच्यै चुच्यै अभिषवार्थों // 110 // मव्य तु बन्धे क्ष्मायैङ् विधूननेऽथो निशामनार्चनयोः / चायग् व्ययी तु गमने रान्ता: त्सर कैतवगतौ स्यात् // 111 / / क्मर कौटिल्ये धोक्रं तु गतिचातुर्येऽभ्र मभ्र बभ्र गतौ / चर भक्षणे च धातुः खोक्रं तु गमनप्रतीघाते // 112 // लान्ताः पञ्चाशत् स्युर्दल त्रिफला 'विशरणे गल न्यादे / शूल रुजायां कूल. तु वरणे मूल प्रतिष्ठायाम् . // 113 // मील श्मील स्मील मील निमेषेऽथ णील वर्णार्थः / . शील समाधौ कील तु बन्धे पील प्रतिष्टम्भे // 114 // फल निष्पत्तौ तूल तु निष्कर्षे फुल्ल विकसनार्थः स्यात् / श्वल्ल श्वल शीघ्रगतौ चुल्ल स्याद् हावकरणार्थः // 115 // चिल्ल तु शैथिल्ये च स्खल खेल क्वेल केल वेल तथा / चेल चलने च खल सञ्चये च इह पूल सङ्घाते // 116 // पेल तिल फेल शेलश्रित् च सेल वेहुल सल तिल्ल स्युः / / पल्ल वेल्ल गमनेऽली भूषणपूणतानिषेधेषु // 117 // वलि वल्लि तु संवरणे शलि चलने चाथ कल्लिं मौनार्थे / मलि मल्लि धारणार्थो कलि सङ्ख्याशब्दयोरुक्तः / // 118 // 288