________________ कर्द तु कुत्सितशब्दे हिंसायां तर्द खर्द दशने स्यात् / चदु दीप्त्याह्लादनयोः क्लिदु इति परिदेवने ख्यातः // 83 // कदुयुक्क्ल दु आमन्त्रणरोदनयोर्विदुः स्मृतोऽवयवे / स्कन्दं गतिशोषणयोष्टुनदु समृद्धौ बद स्थैर्ये // 84 // खद हिंसायां च गद व्यक्तायां वाचि भक्षणे खादृ / .. अर्द तु गतिपाचनयोस्त्रदु चेष्टायामदु तु बन्धे // 85 // इदु परमैश्वर्ये स्यादाप्रवणे स्कुदुङ् षूदि तु क्षरणे / प्रोक्ता वदुङ स्तुत्यभिवादनयोर्भदुङ् सुखशुभयोः // 86 // . स्पदुङ् तु किञ्चिच्चलने क्लिदुङ् तु परिदेवने श्विदुङ् श्वैत्ये / मदुङ् स्तुतौ प्रमोदे स्वप्ने गमने मदार्थेऽपि // 87 // हादि तु शब्दे ह्लादैङ् सुखे च गुदि गुदि कुर्दि केल्याः / पदि तु कुत्सितशब्दे ददि दाने मुदि तु हर्षे स्यात् // 88 // स्वदि ष्वदियुग् स्वादि तु आस्वादन उदि खेलनार्थे स्यात् / / मानेऽपि हदि तु पुरीषोत्सर्गे याचने तु चदेग् // 89 // णेदृग् णिदृग् द्वितयं स्यात्कुत्सासन्निकर्षयोः प्रोक्तम् / ओबुन्दग् आलोचे मेधावधयोमिदृग् मेदृग् . // 90 // धान्ताः षिधू गमार्थे षिधौ तु माङ्गल्यशास्त्रयोरुक्तः / एधि तु वृद्धौ स्पर्द्धि तु सङ्घर्षे बन्धने तु बधि // 91 // गाधृङ् भवेत्प्रतिष्ठालिप्साग्रन्थेषु धारणे तु दधि। मेधृग् सङ्गमहिंसामतिषून्दार्थो शृधूग मृधूम् // 92 // नाधृङ् नाथङ् वत् स्याद् बुधृग् बोधे रोटने बाधृङ्। शुन्ध तु शुद्धौ नान्ताः पनि स्तुतौ मानि पूजायाम् // 93 // वन षन भक्तौ स्वन वन धन ध्वन स्तन चन स्वनार्थाः स्युः। शानी तु तेजने स्याद्दानी अवखण्डनेऽथ खनूग् // 94 // 280