________________ हुडुङ् पिडुङ् सङ्घाते शडुङ् रुजायां च पडुङ् गमनार्थः / शाडङ् श्लाघायां स्यात् द्राडङ् ध्राडङ् विशरणार्थों // 71 // वाडङ् आप्लाव्यार्थे तडुङ् भवेत्ताडने भुडुङ् वरणे / मुडुङ् इति मार्जनार्थे हेडङ् होडङ् अनादरणे // 72 // हिडुङ् गमने च अड्ड स्यादभियोगेऽथ चुड्ड हावकृतौ। भडुङ् परिभाषणार्थो मडुङ् बडुङ् वेष्टने कुडुङ् दाहे // 73 // खोड़ प्रतिघातेऽथो णान्ता स्याद्वर्णगमनयोः शोण / घुणि घूणि भ्रमणार्थों पणि तु व्यवहारस्तुत्योः स्यात् // 74 // अण रण वण बण भण मण धण व्रण भ्रण कण क्वण ध्वणयुग / ध्रण चण शब्दे पैतृ श्लेषगतिप्रेरणेष्वथो ओण // 75 // अपनयने घिणुङ् घुणुङ् घृणुङ् ग्रहणेऽथ वेग् ज्ञाने। चिन्तायां वादित्रादाने गमने निशामनेऽपि स्यात् // 76 // श्रोण श्लोण स्यातां सङ्घाते तान्तकाः कित निवासे / जुतृङ् युतृङ् दीप्त्यर्थौ यतैङ् प्रयत्ने चतेग् तु याञ्चायाम्॥ 77 // संज्ञाने तु चितै स्यात् च्युत आसेचनेऽत सततगतौ / चुत चुत् श्च्युत् क्षरणे जुत् तु भासने ख्यातः // 78 // अतु बन्धने ऋत घृणागमनस्पर्द्धषु पञ्चदश थान्ताः / कुथु मन्थ मान्थ पुथु लुथु मथु हिंसाबाधयोर्जेयाः // 79 // नाथङ् उपतापाशीर्याञ्चैश्वर्येषु कत्थि तु.श्लाघे / प्रोग् पर्याप्तौ स्यात् वेथङ् युतविशृङ् याञ्चायाम् // 80 / / कौटिल्ये ग्रथुङ् स्यात् शैथिल्ये श्रथुङ मिश्रृग् मतिवधयोः / मेथग् सङ्गे चाथो दान्ता ज्ञेयास्त्रिपञ्चाशत् - // 81 // णिदु कुत्सायामथ रद विलेखने नर्द गर्द गर्द रखे। अव्यक्तभाषणे णदसंयुक्ता शिक्ष्विदा धातुः // 82 // 285