________________ अञ्चूग् गमननिनादाव्यक्त्योः षचि सेचने कचि तु बन्धे / दीप्तौ च कचुङ् वर्चि तु दीप्तौ श्वचु श्वचि गमार्थों // 47 // पचुङ् व्यक्तीकरणे ष्टुचि प्रसादेऽथ दर्शने लो / मचि मुचुङ् कल्कने मचुङ् धारणोच्छायपूजनेषु च वै // 48 // स्तेये ग्लुचू चू डुपचीष् पाके व्यक्तवाचि तु शचि स्यात् / छन्ता हीछ व्रीडे हुर्छा कौटिल्य आछु आयामे // 49 // स्फुर्छ स्मुर्छ विस्मृत्येौँ लछ लाछु लक्षणे म्लेछ / अव्यक्तवाचि मुर्छा मोहसमुछाययोः प्रमादे तु // 50 // युछ वाछु त्विच्छायां जान्तास्तिजि तु क्षमानिशानयुगे / एजुङ् भ्राजि भ्रेजुङ् राजग् टुभ्राजी दीप्तौ स्युः // 51 // रञ्जी रागेऽथ भज़ी सेवायां स्यादिजुङ् धृजु ध्वजुयुग्। ध्वज धृज वज ध्रज ध्रजु षस्ज व्रज युग्गतावज तु // 52 // क्षेपे च ट्वोस्फूर्जा वज्रनिनादे कुजू खुजू स्तेये। खजु गतिवैकल्यार्थे खर्ज स्याद्व्यथनमार्जनयोः // 53 // जज जजु युद्धे लज लजु तर्ज स्याद्भर्त्सनेऽथ लाजयुतः / लाजुरपि भर्जने चैतृ कम्पने तुज तु हिंसायाम् // 54 // तुजु बलने चाव्यक्ते शब्दे गुज कूज गुजुयुतः क्षीज / गर्ज गृजु गजु गृजश्रित् मुज मुजु मृज मज निनादार्थाः // 55 // गज मदने च व्यथने तु कर्ज मन्थे खज त्यजं हानौ / ईजि तु गतिकुत्सनयोजुङ् भृजैङ् भर्जने ऋजि तु // 56 // अर्जनगमनस्थानार्जनेषु सर्जार्ज अर्जने स्याताम् / षजं सङ्गे टान्ताः स्फुट स्फुट विशरणे स्याताम् // 57 // . स्फुटि विकसनेऽट्टि हिंसातिक्रमयोर्गोष्टि लोष्टि सङ्घाते / घट्टि तु चलने चेष्टि तु चेष्टायां रुटु लुटु स्तेये // 58 // 283