________________ // 11 // // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // रुचि विनापि सद्वाक्यं, हिताय रौहिणेयवत् / धर्मोपदेशे शुद्धत्वं, केवलज्ञानशालिनाम् तदभावेऽवधिमन-पर्ययश्रुतधीभृताम् / केवलात् श्रुतधीः श्रेष्ठा, यतः प्रकृतिकारणात् श्रुतज्ञानेऽक्षरं मुख्यं, संज्ञाव्यञ्जनलब्धिभिः / तत्रिधा तत्र संज्ञासौ, भगवत्यां नमस्कृता तत्त्वज्ञानं देवतत्त्वाद् गुरुतत्त्वादशङ्कितात् / सूत्रार्थालोकनाद्धर्मोऽ-क्षरभावादिचिन्तनात् तदक्षरं पदं ब्राह्मी, पूर्वमभ्यस्यते लिपिः / मूलं कलानां सर्वासां, नेत्रं क्षेत्रं गुणश्रिया कुलदेवीव जीवानां, जीवनं विश्वपावनम् / मानोपकारान्मोक्षस्य, साधनं धनवर्धनम् . देवी सरस्वती नाम्ना-धिष्ठात्री श्रुतदेवता। . वस्या ब्रह्मेन्द्र एवान्य-मते गणपतिःसुरः देवा लोकान्तिकास्तस्या, वश्याः सारस्वतादयः / स्वरव्यञ्जनरक्षायै, यक्षास्तच्छक्तयः परा जगतः पालनाद्विश्व-व्याप्तासौ शक्तिरूपिणी / मातृका गीयते श्वेता-म्बरनिष्ठाऽर्थसाधनी भगवद्वदनाम्भोजे, राजहंसीव दीव्यति। . सुद्धवर्णा पदे रक्ता-ऽध्यक्षा मौक्तिकदर्शनी भारती भरतक्षेत्रो-त्पत्तेर्गोरसवर्द्धनात् / सरस्वती महर्षीणां, राजते राजतेजसा // 16 // // 17 // // 18 // // 19 // // 20 // // 21 // 200