________________ संयमः सूनृतं शौचं, ब्रह्माकिञ्चनता तपः / क्षान्तिर्दिवमृजुता, मुक्तिश्च दशधा स तु // 419 // धर्मप्रभावतः कल्प-द्रुमाद्या ददतीप्सितम् / गोचरेऽपि न ते यत्स्यु-रधर्माधिष्ठितात्मनाम् // 420 // अपारे व्यसनाम्भोधौ, पतन्तं पाति देहिनम् / सदा सविधवत्र्येक-बन्धुर्धर्मोऽतिवत्सलः . || 421 // आप्लावयति नाम्भोधि-राश्वासयति चाम्बुदः / यन्महीं स प्रभावोऽयं, ध्रुवं धर्मस्य केवलः // 422 // न ज्वलत्यनलस्तिर्यग, यदूर्ध्वं वाति नानिलः / अचिन्त्यमहिमा तत्र, धर्म एव निबन्धनम् // 423 // निरालम्बा निराधारा, विश्वाधारों वसुन्धरा / यच्चावतिष्ठते तत्र, धर्मादन्यद् न कारणम् // 424 // सूर्याचन्द्रमसावेतौ, विश्वोपकृतिहेतवे / उदयेते जगत्यस्मिन्, नूनं धर्मस्य शासनात् .. // 425 // अबन्धूनामसौ बन्धु-रसखीनामसौ सखा / अनाथानामसौ नाथो, धर्मो विश्वैकवत्सलः // 426 // रक्षोयक्षोरगव्याघ्र-व्यालानलगरादयः / . नापकर्तुमलं तेषां, यैर्धर्मः शरणं श्रितः // 427 // धर्मो नरकपाताल-पातादवति देहिनः / धर्मो निरुपम यच्छ-त्यपि सर्वज्ञवैभवम् मi.cो.७१४ थी ७४१-त्रि.१.सं. શ્રીવાસુપૂજિનદેશનામળે શ્લોક 12 થી 37 दिवसे च रजन्यां च, मुखमापृच्छय खादताम् / / भक्ष्याभक्ष्यविवेकानां, सौगतानां कुतस्तपः // 722 // // 428 // 102