________________ // 19 // // 20 // // 21 // // 22 // // 23 // // 24 // उपधानविधिश्चित्रशेषाशयविशोधनः / न्याय्यो वातादिवैषम्यविशेषौषधकल्पवत् न विधिः प्रतिषेधो वा कुशलस्य प्रवर्तितुम् / तदेव वृत्तमात्मस्थं कषायपरिपक्तये न दोषदर्शनाच्छुद्धं वैराग्यं विषयात्मसु / मृदुप्रवृत्त्युपायोऽयं तत्त्वज्ञानं परं हितम् श्रद्धावान् विदितापायः परिक्रान्तपरीषहः / भव्यो गुरुभिरादिष्टो योगाचारमुपाचरत् शुचौ निष्कण्टके देशे समप्राणवपुर्मनाः / स्वस्तिकाद्यासनजयं कुर्यादेकाग्रसिद्धये प्राणायामो वपुश्चिनजाड्यदोषविशोधनः / शक्त्युत्कृष्टकलत्कार्यः प्रायेणैश्वर्यसत्तमः क्रूरक्लिष्टवितर्कात्मा निमित्तामयकण्टकात् / उद्धरेद् गतिशब्दादि वपुःस्वाभाव्यदर्शनात् चरस्थिरमहत्सूक्ष्मसंज्ञाज्ञानार्थसंगतिः / यथासुखजयोपायमिति यायाज्जितं जिनम् इत्याश्रवनिरोधोऽयं कषायस्तम्भलक्षणः / . तद्धर्म्यमस्माच्छुक्लं तु तमःशेषक्षयात्मकम् नेहारम्भणचारोऽस्ति केवलोदीरणव्यये। अनन्तैश्वर्यसामर्थ्यात् स्वयं योगी प्रपद्यते / तत्क्षीयमाणं क्षीणं तु चरमाभ्युदयक्षणे / कैवल्यकारणं पङ्ककललाम्बुप्रसादवत् चक्षुर्वद्विषयाख्यातिरवधिज्ञानकेवले / शेषवृत्तिविशेषात्तु ते मते ज्ञानदर्शने // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // // 30 // 43