________________ // 437 // // 438 // // 439 // // 440 // // 441 // // 442 // नणु पज्जुसिअविदलप्पमुहं पाएण नीरसं भणिअं। तं चिअ मुणीणमुचिअं तप्पडिसेहो न सिं सेओ तन्नो जुत्तं जम्हा गहिअव्वं तं हविज्ज साहूणं / जं संजमउवगारी बाहाकारी न कइआ वि अण्णह भूइष्पमुहं गहिअव्वं न उण घयगुडप्पमुहं / एवं विआणिऊणं पवयणमेरा न मोत्तव्वा पज्जुसिअविदलमाई अल्लं पाएण कुहिअलालजुअं / तेणं तव्वइरित्तं जुत्तं साहूण कूराई कूराई पुण पायं न उत्तदोसेहिँ दूसिअं जम्हा / तेण निरिक्खिअ मुणिणो दूसिअसेसं पभुजंति तं पि जइ केवलेणं जलेण रद्धं हविज्ज जहजायं / अम्हेह वि णो घिप्पइ विअलं जह बुड्ढवयणाओ . केवलजलेण रद्धं तंदुलमाई वि पाय चलिअरसं / विदले सुराणुभावो किं जाओ जेण णो चलिअं? - जं जं बहलसहावं पवयणमेराइ रक्खयं भणिअं। जह बंभव्वयगुत्ती भणिआ न तहा य अण्णेसिं पायं गुत्तिविलोवे लोवो बंभव्वयस्स जह दिट्ठो / दिट्ठिपहाणेहिं तह नन्नेसि महब्बयाणं पि. जइ विअ विदलप्पमुहं पज्जुसिअंकिंचि होइ अविणटुं। किंचि वि ओअणजायं विणट्ठमवि होइ पज्जुसि तह विअ बहलसहावं अहिगिच्चा होंइ चारु ववहारो। सो चेव संजयाणं पवित्तिनिवित्तिहेउ त्ति सुविहिअनेवत्थजुओ ववहारपरिक्खिओ जहा पुज्जो। न तहा कुतित्थलिंगी ववहारपरिक्खबाहिरिओ // 443 // // 444 // // 445 // // 446 // // 447 // // 448 // 364