________________ जण्णं कुमईवग्गो अरहंताईण णाम समरंता / पइसमयं मह पावं अणंतभवकारणं जणइ // 307 // निअनिअमयाणुरत्ते अरिहंताई वि मणसि काऊणं / झाइज्जा तमजुत्तं कलंकदाणं महंताणं - // 308 // परमेसरुत्तिनामं जह एगं भिन्नभिन्नअत्थजुअं। निअनिअमयफलहेऊ आयारायारझाणवसा // 309 // पुच्छिज्जंतो लोओ निअनिअआयारभासगं भणई। आयारं पुण बंभेसरमाइअबिबरूवाई // 310 // एवं कुवक्खवग्गो पुच्छिज्जंतो वि भणइ अम्हाणं / सद्दहणाइसमा जे ते अरिहंताइणोऽभिमया // 311 // उवहाणं पुण नाणा जह तह रइअम्मि जेण केणा वि। . किंतु रयणाविसेसे पुरिसविसेसेण जहजुग्गं - // 312 // जह सुअकेवलिरइए निज्जुत्तिमुहम्मि नत्थि उवहाणं / पज्जोसवणाकप्पे अस्थि तओ तं पि णेगविहं // 313 // इअ पुण्णिममयमूलं उस्सुत्तं तिविहमेअमिहमुत्तं / साहुपइट्ठाचउदसिमहानिसीहाण पडिसेहो // 314 // सेसं पवड्ढमाणं उस्सुत्तं जमिह सड्ढसामइए। पच्छा इरिआपमुहं किअंतमवि खरयरेण समं // 315 // खरयरमयं पि कालाणुभवा मूढाण साहुभंतिकरं / तेणं तम्मयवसरे पभणिज्जंतं इहं पि मयं // 316 // एवं कुवक्खकोसिअसहस्सकिरणम्मि उदयमावण्णे / / चक्खुप्पहावरहिओ कहिओ बिइओ अ पुण्णिमिओ // 317 // नवहत्थकायरायकिअसममहिमम्मि चित्तसिअपक्खे / गुरुदेवयपुण्णुदए सिरिहीरविजयसुगुरुवारे // 318 // 384