________________ // 176 // // 177 // // 178 // // 179 // // 180 // विश्राम-३ . अह चंदप्पहसूरिप्पभवं पुण्णिममयं वडगणाओ। एगारइगुणसट्ठीवरिसे गुरुबंधुऽमरिसेणं गुरुभाया मुणिचंदो संविग्गो आसि सूरिपयपत्तो / कस्सइ तेण पइ8 करिज्जमाणं सुणिअ रुसिओ तम्महविद्धंसमई भणइ पइट्टा न साहुणो किच्चं / दव्वत्थओ त्ति जुत्तिं जपंत महंतसद्देण जिणपडिमाण पइट्ठा न साहुकज्जं तु दव्वथयभावा / अहवा सावज्जत्ता कुसुमेहि जिणिंदपूय व्व दव्वमपहाण दविणं थओ वि जिणभत्ति धम्ममित्तं वा। दूसइ न किंचि किच्चं मुणिउचिअपइट्ठकिच्चेसु . भंगेसु चउसु भागासिद्धो हेऊ अ सज्झवंझो वि। . जं देसेणं दुण्ह वि अहिगारो इह पट्टाए तत्थ वि जमणारंभं जिणभणिअं तम्मिसूरिअहिगारो। सेसेसु अ अहिगारो गुरूवएसा गिहीणं पि थुइदाण मंतनासो जिणआहवणं तहेव दिसिबंधो / नेत्तुम्मीलण देसण गुरुअहिगारा जिणुवइट्ठा ... रहजत्तण्हवणपमुहं सावयकिच्चं सचित्तमाईहिं। जइ गणहरपयठवणा जिणिंददेविंदवावारा अह भावत्थयहेऊ दव्वथओ न य मुणीण सो जुत्तो। जण्णं मुणीण मग्गो सिद्धफलो भावथयरूवो आरंभकलुसभावो कत्थ वि नत्थित्थ पुण्ण जिणआणा। देसाणो सारंभो सावयधम्मो अ दव्वथओ // 181 // // 182 // // 183 // // 184 // // 185 // // 186 // .. 303