________________ काए वि साविगाए विहिओ दिक्खातवो न उज्जमिओ / भावविसुद्धीइ फलं तहा वि से अत्थि इहरा नो . // 144 // अह सा सग्गहगहिया पासे सच्छंदसिढिललिंगीणं / कुणइ तवो नत्थि फलं ता तीसे होइ भूरिभवो // 145 // अच्चन्तखुद्दसीला उवद्दवं कुणइ जो न पूयेइ / जस्सेरिस त्थि गुत्तम्मि देवया स कहं सड्ढोत्थु // 146 // उस्सग्गेण न कप्पइ तीए पूयाइ तस्स सङ्घस्स / जइ मारइत्ता मारउ कुटुंबगं एस परमत्थो // 147 // गीयत्थेणमगारच्छक्कमिह देसियं च सम्मत्ते / रायगुरु देवयावितिच्छेयबलगणभिओगा य // 148 // ता इय अगारणिवेयणाओ धम्मत्थमन्नतित्थम्मि। वयणाओ अववाएण तीए नमणाईसु न दोसो // 149 // इय कइवयसंसयपयपण्हुत्तरपयरणं समासेणं / भणियं जुगपवरागमजिणवल्लभसूरिसीसेण . // 150 // // 1 // पू.श्री.चिरन्तनाचार्यविरचितः . // गुरुतत्त्वप्रदीपः // प्रणम्य श्रीमहावीर-मुत्सूत्रतिमिरच्छिदे। . गुरुतत्त्वप्रदीपोऽयं, माध्यस्थ्यात् क्रियते मया अत्रोत्सूत्रप्रवृत्तस्सत्सूत्रानाभोगतः क्वचित् / पुनस्सूत्रे निमन्त्र्योऽहं, मातः ! शासनदेवते ! यद् रागद्वेषयोर्मध्ये, तिष्ठतीत्युच्यते बुधैः / / मध्यस्थस्य द्विधा तु स्याद्, मिथश्च बृहदन्तरः . 270 // 2 //