________________ // 24 // // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // = // 29 // भवभीरू संविग्गो सुगुरूणं दंसणम्मि असमत्थो / ता तं पवज्जिऊणं पालइ आराहगो सो वि . जइ तं गीयत्थेहिं सुगुरूहि दिट्ठमत्थि सत्थोत्तं / ता तं परो वि गिण्हउ तग्गहणं ननहा जुत्तं ठवणायरिए पडिलेहियम्मि इह साविगाइ वंदणयं / किं सावगस्स कप्पइ सामाइय-माइकरणं च कप्पइ न एगकालं वंदणसामाइयादि काउं जे / एगस्स पुरो ठवणायरियस्स य सडसड्डीणं उस्सुत्तभासगाणं चेइयहरवासिदव्वलिंगीणं / जुत्तं किं सावयसावियाणं वक्खाणसवणं त्ति तित्थे सुत्तत्थाणं सवणं तित्थं तु इत्थ णाणाई / गुणगणजुओ गुरू खलु सेससमीवे न तग्गहणं इहरा ठवेइ कन्ने तस्सवण मिच्छमेइ साहू वि। . अबलो किमु जो सड्डो जीवाजीवाइअणभिन्नो कीरइ न वत्ति जं दव्वलिंगिणो वंदणं इमं पुटुं / तत्थेयं पच्चुत्तरं लिहियं आवस्सयाईसु पासत्थाई वंदमाणस्स नेव कित्ती न निज्जरा होइ / कायकिलेसं एमेव कुणइ तह कम्मबंधं च जो पुण कारणजाए जाए वायाइओ नमोक्कारो। कीरइ सो साहूणं सड्डाणं सो पुण निसिद्धो पोसहियसावयाणं पोसहसालाइ सावगा बहुगा / गंतुं पगरणजायं; किं पि वियारिति तं जुत्तं केणइ गीयत्थगुरुं, आराहतेण पगरणं किंचि / सुट्ठसुयं नायं चिय तस्सत्थं कहइ सेसाणं 269 - // 30 = // 31 // // 32 // // 33 // // 34 // // 35 //