________________ // 21 // // 22 // // 23 // // 24 // // 25 // // 26 // प्रतिपाद्यस्य यः सिद्धः पक्षाभासोऽस्ति लिङ्गतः / लोकस्ववचनाभ्यां च बाधितोऽनेकधा मतः अन्यथानुपपन्नत्वं हेतोर्लक्षणमीरितम् / तदप्रतीतिसन्देहविपर्यासैस्तदाभता असिद्धस्त्वप्रतीतो यो योऽन्यथैवोपपद्यते / विरुद्धो योऽन्यथाप्यत्र युक्तोऽनैकान्तिकः स तु साधर्म्यणात्र दृष्टान्तदोषा न्यायविदीरिताः / अपलक्षणहेतूत्थाः साध्यादिविकलादयः वैधयेणात्र दृष्टान्तदोषा न्यायविदीरिताः / साध्यसाधनयुग्मानामनिवृत्तेश्च संशयात् वाद्युक्ते साधने प्रोक्तदोषाणामुदभावनम् / .. दूषणं निरवद्ये तु दूषणाभासनामकम् सकलावरणमुक्तात्म केवलं यत् प्रकाशते / प्रत्यक्षं सकलात्मसततप्रतिभासनम् . प्रमाणस्य फलं साक्षादज्ञानविनिवर्त्तनम् / केवलस्य सुखोपेक्षे शेषस्यादानहानधी: अनेकान्तात्मकं वस्तु गोचरः सर्वसंविदाम् / एकदेशविशिष्टोऽर्थो नयस्य विषयो मतः नयानामेकनिष्ठानां प्रवृत्तेः श्रुतवर्त्मनि।. सम्पूर्णार्थविनिश्चायि स्याद्वादश्रुतमुच्यते प्रमाता स्वान्यनिर्भासी कर्ता भोक्ता विवृत्तिमान् / स्वसंवेदनसंसिद्धो जीवः क्षित्याद्यनात्मकः प्रमाणांदिव्यवस्थेयमनादिनिधनात्मिका / सर्वसंव्यवहतॄणां प्रसिद्धापि प्रकीर्तिता // 27 // // 28 // // 29 // // 30 // // 31 // // 32 // 17