________________ सद्धेतोर्ग्रहणं तथा स्मरणकं व्याप्तेस्तयोः संभवं, साध्यज्ञानमतोऽनुमानकमिदं स्वार्थं सुधीभिधृतम् / . साध्यत्वं च तथाप्रतीतमिति तत्त्रेधा श्रुते विश्रुतं, किंत्वस्मादनिराकृताद् द्वयमिदं चाभीप्सितात्तत्रयम् // 120 // कृशानुमानयं देशः प्रोच्यते पक्षधर्मता / हेतूदितं धूमवत्वादनुमानं सुधीहितम् // 121 // हेतु प्रयोगतो द्वेधा तथोपपत्तिरन्वयः / अन्यथानुपपत्तिस्तु व्यतिरेकः पुरोदितः // 122 // परस्मै प्रतिपाद्यत्वात्प्रत्यक्षादेः परार्थता / तथैवमनुमानस्य सर्वत्रैवं विभावना // 123 // हेतोर्वचनतः स्वार्थं पक्षहेत्वोः परार्थकम् / बालव्युत्पत्तिसिद्ध्यर्थं पञ्चावयवमीरितम् // 124 // प्रतिबन्धप्रतिपत्तेरास्पदं यस्य लक्षणम् / द्वेधा साधर्म्यवैधर्म्यभेदाद् दृष्टान्त एव सः // 125 // साध्यर्मिणि सद्धेतोरुपसंहरणं तथा / . धूमश्चात्र प्रदेशेऽयं तस्मादुपनयःस्मृतः // 126 // तत्पुनः साध्यधर्मस्य पूर्वयोगेन भाषितम् / तत्तस्मादग्निरत्रायमेतन्निगमनं स्मृतम्, // 127 // यथाग्निमानयं देशः प्रोच्यते पक्षधर्मता / धूमवत्त्वाद्धेतुवाक्यमनुमानं परार्थकम् . // 128 // य एवं च स एवंतौ दृष्टान्तोपनयावुभौ / पाकस्थानं निगमनं मन्दधीसिद्धये वयं // 129 // प्रकाश्यते साधनधर्मसत्ता तस्यां कृता साध्यसुधर्मसत्ता। . साधर्म्यदृष्टान्त इति प्रदिष्टो यत्रास्ति भूमौ दहनस्तु तत्र // 130 // . . . 233