________________ // 24 // // 25 // . // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // एकत्रोपाधिभेदेन बौद्धा द्वन्द्वंद्व क्षणे क्षणे / न विरुद्धं रूपरस-स्थूलास्थूलादिधर्मवत् . विनाशः पूर्वरूपेणो-त्पादो रूपेण केनचित् / द्रव्यरूपेण च स्थैर्य-मनेकान्तस्य जीवितम् द्रव्यक्षेत्रकालभावैः स्वैः स्वत्वमपरैः परम् / भेदाभेदानित्यनित्यं पर्यायद्रव्यतो वदेत् अंशापेक्षमनेकत्व-मेकत्वं त्वंश्यपेक्षया / प्रमाणनयभङ्ग्या चानभिलाप्याभिलाप्यते विजातीयात्स्वजातीया-व्यावृत्तेरनुवृत्तितः / व्यक्तिजाती भणेन्मिश्रे एकान्ते दूषणे क्षणात् नान्वयः स हि भेदित्वा-न्न भेदोऽन्वयवृत्तितः / मृद्भेद्यवश्यसंसर्ग-वृत्तिजात्यन्तरं घटः भागे सिंहो नरो भागे योऽर्थो भागद्वयात्मकः / तमभागं विभागेन नरसिंहं प्रचक्षते नरसिंहस्वरूपत्वान्न सिंहो नररूपतः। / शब्दविज्ञानकार्याणां भेदाज्जात्यन्तरं हि सः घटमौलिसुवर्णार्थी नाशोत्पादस्थितिष्वयम् / शोकप्रमोदमाध्यस्थ्यं जनो याति सहेतुकम् पयोव्रतो न दध्यत्ति न पयोऽत्ति दधिव्रतः / अगोरसवतो नोभे तस्माद्वस्तु त्रयात्मकम् जन्यत्वं जनकत्वं च क्षणस्यैकस्य जल्पता / बौद्धेन युक्त्या मुक्तीश तवैवाङ्गीकृतं मतम् प्रमाणस्यापि फलतां फलस्यापि प्रमाणताम् / वदद्भयां कणभक्षाक्ष-पादाभ्यां त्वन्मतं मतम् // 30 // // 31 // // 32 // // 33 // // 34 // // 35 // 157