________________ स्यादस्त्येव स्यादवक्तव्यमेवेति विधिकल्पनया युगपद्विधिनिषेधकल्पनया पञ्चमः // 19 // स्यानास्त्येव स्यादवक्तव्यमेवेति निषेधकल्पनया युगपद्विधि निषेधकल्पनया च षष्ठः // 20 // स्यादस्त्येव स्यानास्त्येव स्यादवक्तव्यमेवेति क्रमतो विधि निषेधकल्पनया युगपद्विधिनिषेधकल्पनया च सप्तमः // 21 // विधिप्रधान एव ध्वनिरिति न साधुः // 22 // निषेधस्यापि तस्मादप्रतिपत्तिप्रसक्तेः // 23 // अप्राधान्येनैव ध्वनिस्तमभिधत्ते इत्यप्यसारम् // 24 // वचित्कदाचित्कथंचित्प्राधान्येनाप्रतिपन्नस्याप्राधान्यानुपपत्तेः॥ 25 // निषेधप्रधान एव शब्द इत्यपि प्रागुक्तन्यायादपास्तम् // 26 // क्रमादुभयप्रधान एवायमित्यपि न साधीयः. // 27 // अस्य विधिनिषेधान्यतप्रधानत्वानुभवस्याप्यबाध्यमानत्वात् // 28 // युगपद्विधिनिषेधात्मनोऽर्थस्यावाचक एवासौ इतिवचो न चतुरस्रम् 29 तस्यावक्तव्यशब्देनाप्यवाच्यत्वप्रसङ्गात् // 30 // विध्यात्मनोऽर्थस्य वाचकः सन्नुभयात्मनो युगपदवाचक एव सइत्येकान्तोऽपि नैकान्तः // 31 // निषेधात्मनः सह द्वयात्मनश्चार्थस्य वाचकत्वावाचकत्वाभ्यामपि शब्दस्य प्रतीयमानत्वात् / // 32 // निषेधात्मनोऽर्थस्य वाचकः सन्नुभयात्मनो युगपदवाचक एवायमित्यप्यवधारणं न रमणीयम् // 33 // इतरथापि संवेदनात् // 34 //