________________ सामाइय छेयट्ठावणं च परिहारसुद्धियं तह य / अह सुहुमसंपरायं पंचमचरणं अहक्खायं // 12 // होइ तवो वि य दुविहो, सभिंतर-बाहिरो जिणुट्ठिो / इक्किको छन्भेओ, जहसत्तीए निरासंसो // 13 // नाणं पगासयं, सोहओ तवो, संजमो य गुत्तिकरो। सम्मत्ताणुगयाइं इमाइं साहति मुत्तिसुहं // 14 // संसारियं पि जं पयइसुंदरं, जं च अक्खयं सोक्खं / आराहणाफलं तं निद्दिटुं नट्ठमोहेहिं , // 15 // जं च परिणामविरसं अणंतसंसारकारणं जं च। ... दुक्खं वा सोक्खं वा विराहणाकारणा तं तु // 16 // जं च सुतिक्खं दुक्खं, जं चिय सुहमुत्तमं तिलोयम्मि / तं जाण जिणुद्दिटुं विराहणा-ऽऽराहणाण फलं . // 17 // केई दंसण-चरणे दुविहं आराहणं बुहा बिति / जमऽदंसणं न नाणं, संजमरहिओ तवो न तवो // 18 // अण्णाणे नत्थि रुई, नाणं च न किंचि रुइपरिच्चत्तं / "बोडा" न पढंति पुढो ता णिच्छयओ दुवे ताई // 19 // संजमविरिएण विणा न चरित्तं, विरियगृहणे न तंवो। ता चारितं पि तवो, सण-चरणेहिं तेण दुहा // 20 // निच्छयओ "मूलाराहणाई" एयं पि "बोडिया" बिति / तमजुत्तंतिमसुयकेवलिणो(?) इणमो जओ भणियं // 21 // निच्छयनयस्स चरणस्सुवघाए नाण-दसणवहो वि। . ववहारस्स उ चरणे हयम्मि भयणा उ सेसाणं // 22 // जो जहवायं न कुणइ मिच्छट्टिी तओ हु को अण्णो ? / वड्ढेइ य मिच्छत्तं परस्स संकं जणेमाणो . // 23 // 80