________________ مر // 2 // // 3 // س // 4 // ه م श्रीवीरभद्राचार्यविरचिता / ॥आराहणापडागा // नियसुचरियगुणमाहप्पदिण्णसुररायरिद्धिवित्थारो / जयइ सुररायपूइयगुणमाहप्पो महावीरो आराहणासरूवं अणुहवसिद्धं च फलमसंदिद्धं / भणियं तेण भगवया गोयममाईण जं पुव्वं तं पुव्वपुरिससंकमकमागयं भावसंकममुदारं / संखेवओ महत्थं भणामि सुत्ताणुसारेण जिणवयणसुइपवित्तं मणुयत्तं पाविऊण सप्पुरिसा!। सासयसुहकामेहिं होयव्वं होउकामेहि जं अत्थ-कामकामा अपत्तकामा पडंति अहरगई। ता धम्म-मुक्खकामा सासय-निब्बाहसुहकामा सइ तम्मि सासयसुहे केवलिकहिए य तस्सुवायम्मि / एगंतसाहए सुपुरिसाण जत्तो तहिं जुत्तो तं जाणं नाण-दसण-चारित्त-तवेसु कयचउक्खंधं / आराहणाउवायं निद्दिष्टुं पुव्वसूरीहिं / तेसिमुवएससारं दुवालसंगं पि पवयणं "आणा"। जं तीए आराहणमेसा "आराहणा" भणिया जीवादीण जहत्थं पयत्थसत्थाण जिणपणीयाणं / जो अवबोहो सम्मं वयंति तं नाणिणो "नाणं" मण्णइ तमेव सच्चं णीसंकं जं जिणेहिं पण्णत्तं / "दंसण" मिणमो भणियं सुभाऽऽयपरिणामरूवं तु निद्दलियदोसरिउणो जयगुरुणो परहिएक्ककयरुइणो। सव्वण्णुणो जिणिंदा न अण्णहावाइणो जेण م // 7 // م // 8 // 8 // 9 // // 10 // // 11 //