________________ // 912 // // 913 // // 914 // // 915 // // 916 // // 917 // तो निज्जामयगुरुणो खवगं आराहणाए उवउत्तं / जाणंति सुयरहस्सा कयसन्नागा य खवएण : एवं तु भावियप्पा पसत्थझाणो विसुद्धलेसागो / आराहणापडागं हरइ अविग्घेण सो खवओ तेलोकसव्वसारं चउगइसंसारदुक्खनासणयं / आराहणं पवनो सो भयवं मुक्खसोक्खत्थी उकोसं आराहणमाराहिय साहु लहइ जहविहिणा / तेण भवग्गहणेणं सिद्धि निद्धणियकम्मंसो .. तह मज्झिममाराहणमणुपालियऽणुत्तराइसु सुरेसु / ईसाणंतेसु मुणी पावइ वेमाणियसुरत्तं आराहणं जहन्नं आराहित्ता मुणी मुणियभावो / सोहम्मम्मि महड्डियदेवत्तं पावए पवरं परमाराहणजुत्तो सुसावओ जाइ अच्चुयं कप्पं / सो चेव जहन्नाए सोहम्मे लहइ देवत्तं . किं जंपिएण बहुणा ? जो सारो केवलस्स लोयस्स / तं अचिरेण लहंती फासित्ताऽऽराहणं सयलं भोए अणुत्तरे भुंजिऊण देवेसु लहिय सुनरत्तं / / पाविय अरिहत्तं वा अणुहविउं वा गणहरत्तं लहिऊण वा मुणीणं आमोसहिमाइयाओ लद्धीओ / भुच्चा व चक्कि-बल-वासुदेव-खयरिंदरिद्धीओ अप्पडिहयसोहग्गं वरलावनं सुरूवमिस्सरियं / आइज्जवयण-सुस्सरमिच्चाइगुणाण संपत्ति सम्मत्तं चारित्तं चउखंधाऽऽराहणं च लहिऊणं / सत्तट्ठभवग्गहणे अणइक्कमिउं लभे सिद्धि // 918 // // 919 // // 920 // // 921 // // 922 // // 923 //