________________ दंड-कसा-लट्ठिसयाणि ढिकुरा कडगमद्दणं घोरं / कुंभीपाओ तत्थ य पलीवणं भत्तवोच्छेओ / // 864 // सूलारोवण पट्टसगहणं उब्बंधणं हडिक्खेवो / छंदयऽसियारणाई काराए चड्डणं विविहं // 865 // कन्चट्ठ-सीस-नासा-जीहा-कर-चरण-वसणछेयणयं / अच्छीणं उद्धरणं दंत-ऽट्ठीणं च भंजणयं // 866 // अग्गि-जल-वाल-विसहर-विस-अरि-सत्थाभिघाय-वाहीहिं / मुत्त-पुरीसनिरंभण-उण्ह-पिवासा-खुहाईहिं // 867 // जं दुक्खं संपत्तो अणंतखुत्तो मणे सरीरे य / माणुसभवे वि तं सव्वमेव चिंतेहि तं धीर ! // 868 // सुरलोगम्मि सुरा वि हु वरभूसणभूसिया अणंतसुहं / अणुहविय परिवडंती तओ वि तेसिं महादुक्खं // 869 // एगत्थसुरसमिद्धि अन्नत्थ व पिच्छिउंचवणदुक्खं / सयसिक्करं व फुट्टइ जं न वि हिययं, अओ चुज्जं // 870 // ईसा-विसाय-परिभव-परपेसण-वज्जताडणाईणि / दुक्खाई सुरविलासिणिविओगजणियाणि देवाणं // 871 // कह सद्द-रूव-रस-गंध-फास-मणहरसुरंगणसुहाई। अणुहविय गब्भदुक्खं पिक्खिय देवा न दुम्मंति // 872 // छम्माससेसजीवियमरणभयऽकंतकंपिरसरीरा / कत्थंइ न लहंति रइं देवा सयणे वणे भवणे // 873 // पमिलाणमल्लदामा सिरि-हिरिपरिवज्जिया मलिणवसणा / चितिति सुरा विमणा 'तुच्छो धम्मो कओ पुविं' // 874 // इय देवेसु वि अभिमाणमित्तसुक्खाइं गरुयदुक्खाई। चितसु निव्वुयहियओ तेसि पि असारयं बहुसो // 875 // 73