________________ // 844 // धरणिंद-कूरगड्डुगफाणीहि, तह सीहसेणकरिणा वि (?) / जाई सरित्तु पत्तं अणसणमरणेण देवत्तं . // 840 // तिरिया वि जइ समत्था समुइन्नपरीसहे विसोढुं जे / ता नरसीह ! नराणं ससहायाणं किमच्छरियं ? // 841 // तह नारय-तिरियत्ते नराऽमरत्ते वि जं तए दुक्खं / पत्तं अणंतखुत्तो तं अणुचितेहि तच्चित्तो // 842 // नरएसु वेयणाओ अणोवमाओ असायबहुलाओ। कायनिमित्तं पत्तो अणंतसो तं बहुविहाओ // 843 // दीहं ससंति, कलुणं भणंति, विरसं रसंति दुक्खत्ता / नेरझ्या अवरोप्पर-सुर-खित्तसमुत्थवियणाहिं जं नारयाण दुक्खं उक्त्तण-दहण-छिंदणाईयं / तं वरिससहस्सेण वि न भणिज्ज सहस्सवयणो वि // 845 // अच्छिनिमीलणमित्तं नत्थि सुहं दुक्खमेव अणुबद्धं / नरए नेरइयाणं अहोनिसं पच्चमाणाणं // 846 // नरयकडयम्मि पत्तो जं रद्धो लोहकंडुएहिं तुमं / नेरइएहि तहिं जं कयत्थिओ पुव्ववेरीहिं जं कूडसामलीए दुक्खं पत्तो सि, जं च सूलम्मि / जं असिपत्तवणम्मि जं च कयं गिद्ध-कंकेहि // 848 // नरयपालेहिं वियणं वेयरणीए य पाविओ जं सि / * जं पांइओ सि खारं कडुयं तत्तं च तउ-तंबं // 849 // जं खाविओ सि अवसो लोहंगारे य पज्जलंते य / कंडूसु जं सि रद्धो काभल्लीए य जं तलिओ // 850 // कुट्टाकुट्टि चुनाचुन्निं मोग्गरघणेहिं मुट्ठीहिं / जं च सि खंडाखंडीकओ तुम नरयपालेहि // 851 // // 847 // 71