________________ पडिणीयदेवयाए गंगातीरे तिसूलभिन्नो वि। आराहणं पवनो किं न सुओ अनियापुत्तो? . // 804 // सिरिभद्दबाहुसीसा चउरो रयणीए चउहिं जामेहिं / सीयं सहित्तु पत्ता दियलोयं, कि तए न सुया? // 805 // पंचसयसाहुसहिओ पव्वयपब्भारमस्सिउं ओमे। भत्तपरित्रं कासी स वयरसामी वि किं न सुओ? // 806 // तह वयरखुड्डुगो विहु तत्तम्मि सिलायले रहावत्ते / हविपिंडो व्व विलीणो निसिद्धभत्तो दिवं पत्तो // 807 // उण्हम्मि सिलावटे जह तं अरहन्नएणं सुकुमालं / / वग्धारियं सरीरं, तह तं चिंतेसि किं न तुमं ? // 808 // सुव्वंति य अणगारा घोरासु भयाणियासु अडवीसु / गिरिकुहर-कंदरासु य विजणेसु य रुक्खमूलेसु // 809 // धिइधणियबद्धकच्छा भीया जर-मरण-जम्मणभयाणं / सेलसिलासयणस्था साहिति उ उत्तिमट्ठाई // 810 // जइ ताव सावयाऽऽकुलगिरिकंदर-विसमकडग-दुग्गेसु / साहिति उत्तमटुं धिइधणियसहायगा धीरा // 811 // किं पुण निक्कारणवच्छलेहिं साहूहि विहियपडिकम्मो / नो सक्किज्जा सम्म साहेउं अप्पणो अटुं? // 812 // सिरिवासुदेवपत्ती जिणपासे गहियचरणपडिवत्ती। कयमासभत्तविरया सिद्धा पउमावई न सुया ? // 813 // काली-सुकालियाओ धन्ना कालाइयाण जणणीओ। . सुयमरणगहियचरणा अणसणमरणा गया सिद्धि - // 814 // खवग ! तए किं न सुया चेडगधूया गिहे वि गहियवया / आलोइयपडिकंता पभावई सुरसुहं पत्ता ? // 815 // 68