________________ // 784 // जइ ता तह अन्नाणी संसारपवड्ढणाए लेसाए / तिव्वाओ वेयणाओ सहंति कुलजा करिति धिई // 780 // किं पुण जइणा संसारसव्वदुक्खक्खयं करितेण / बहुतिव्वकम्मफलजाणएण न धिई करेयव्वा ? // 781 // मेरु व्व निप्पकंपा अक्खोभा, सायरो व्व गंभीरा / धिइमंता सप्पुरिसा होति.महल्लावईए वि। . // 782 // तं सरसि महपइन्ना जं विहिया संघसक्खिया तुमए / 'भंते ! सव्वाहारं पच्चक्खामि त्ति जाजीवं' . // 783 // चउविहसंघसमक्खं सिद्धा-ऽरिह-केवलीण पच्चक्खं / बूढपइन्नविलोवं को जाणंतो कुणइ माणी ? तिनो महासमुद्दो, तरियव्वं गोपयं तुहेयाणि / समइक्कंतो मेरू, परमाणू चिट्ठए इण्हेिं // 785 // कालं अणंतपुग्गलपरियट्टमियं भमित्तु संसारे / कहवि तएसा पत्ता सामग्गी, न य पुणो सुलहा. // 786 // ता धीर ! धरसु अच्वंतधीरिमं, चयसु कीवयपयत्तं / . हरिणंकनिम्मलं नियकुलं पि सम्मं विभावेसु // 787 // जिण-गणहर-चक्कीणं मुणीण समणीण सड्ढ-सड्ढीणं / पासंडीणं तिरियाणमित्थ चिंतेसु चरियाई // 788 // वरनाण-दसणधरा सव्वे तित्थंकरा वि अकरिंसु / कयकज्जा पज्जंते नियमेणं पायवोवगमं // 789 // सुयसागरपारगया भवसिद्धीया वि सव्वलद्धीया / अंते भत्तच्चागं करिति गणहारिणो सव्वे // 790 // अणवज्जं पव्वज्जं पवज्जिउं चक्किणो बला णेगे। . अणसणविहिणा सग्गा-ऽपवग्गसुहसंगिणो जाया ' // 791 //