________________ एवं आपुच्छित्ता परिक्खहेउं गणी तयं खवयं / सारेइ वच्छलत्ता 'एयस्स हियं करिस्सं' ति . // 768 // एवं सारिजंतो कोई कम्मुवसमेण लहइ सई / को वि हु न लभिज्ज सई तिव्वे कम्मे उइन्नम्मि // 769 // तस्स वि गणिवसभेणं पडिकम्ममवट्ठियं पि कायव्वं / उवएसो वि सया से अणुलोमं तस्स दायव्वो // 770 // जाणंतो वि य कम्मोदएण कोई परिस्सहपरज्झो / ओभासिज्ज कुविज्ज व भिंदिज्ज व नियपन्नं पि // 771 // न हु सो कडुयं फरुसं व भासियव्वो, न खिसियव्वो य / न य वित्तासेयव्वो, न य वट्टइ हीलणं काउं // 772 // फरुसवयणाइएहिं माणी खवगो हु फरुसिओ संतो। अवमाणमवक्कमणं कुज्जा असमाहिमरणं वा // 773 // तस्स पइन्नामेरुं विभित्तुमिच्छंतयस्स निज्जवओ। सव्वायरेण कवयं परिस्सहनिवारणं कुज्जा . कन्नामएहिं हिययंगमेहिं निद्धेहिं निउणवयणेहिं / सो खवओ सट्ठाणं ठावेयव्वो तओ गुरुणा // 775 // रोगाऽऽयंकुवसग्गे परीसहे धिइबलेण धीर ! तुमं / आराहणाविपक्खे अविसन्नमणो पराजिणसु // 776 // सुण धीर ! को वि सुहडो उत्तमवंसो जणे वि पत्तजसो / माणी मरणभएणं रणम्मि नासिज्ज हक्काओ : // 777 // गाढप्पहारसंताविया वि सूरा रणे अरिसमक्खं / न मुहं भंजंति सयं, मरंति भिउडीमुहा चेव // 778 // सुट्ठ वि आवइपत्ता न कायरतं करिति सप्पुरिसा / कत्तो पुण दीणत्तं किविणत्तं वा वि काहिति ? // 779 // 75 // 774 //