________________ सुरसामित्तं सुलहं, एगच्छत्तं च पुहविसामित्तं / . चिंतसु जीवाणजए जिणधम्मे दुल्लहा बोही // 744 // बारस वि भावणाओ एया भावेहि धीर ! थिरचित्तो / तह अन्ना पंणवीसं महव्वयाणं च पंचण्हं // 745 // इरियासमिए सया जए उवेह अँजिज्ज व पाण-भोयणं / आयाण-निक्खेव दुगंछ संजए समाहिए संजमए मणो वई // 746 // अहस्ससच्चे अणुवीइभासए जे कोह लोह भय मेव वज्जए / सदीहरायं समुपेहिया सिया, मुणी हु मोसं परिवज्जए सया // 747 // सयमेव उ उग्महजायणे घडे मइमं निसम्म सइ भिक्खु उग्गहं / अणुनविय भुंजिय पाण-भोयणं जाइत्ता साहम्मियाण उग्गहं // 748 // आहारगुत्ते अविभूसियप्पा इत्थिं न निज्झाइ न संथविज्जा / बुद्धे मुणी खुड्डकहं न कुज्जा धम्माणुपेही सेवए बंभचेरं // 749 // जे सद्द रूव रस गंधमागए फासे य संपप्प मणुन्न-पावए। गेहि पओसं न करिज्ज पंडिए से होइ दंते विरए अकिंचणे // 750 / / एयाओ भावणाओ सम्मं भावेहि अप्पमत्तो तं / अच्छिड्डाणि अखंडाणि जेण ते हुँति हु वयाणि // 751 // एवमणुसासणाऽमयपाणं काउं सुनिव्वुओ संतो / खवगो वंदित्तु गुरुं सधीरिम जंपए इत्थं . / / 752 // 'इच्छामो अणुसट्टि भंते ! भवपंकतरणददलट्ठि। जं जह वुत्तं तं तह काहामि हियं' पुणो भणई // 753 // 'अप्पा नित्थरइ जहा परमा तुट्ठी य होइ जह तुब्भं / जह संघस्स गणस्स य सफलो य परिस्समो होइ // 754 // जह अप्पणो गणस्स य संघस्स य विस्सुया हवइ कित्ती / संघस्स पसाएणं तह हं आराहइस्सामि // 755 // 53