________________ कम्मस्स आसवं संवरं च निज्जरण मुत्तमे य गुणे / जिणसासणम्मि बोहि सुदुलहं चिंतए मइमं - // 732 // जुव्वण-जीविय-रूवं पेमं पियसंगमो बलं विभवो। सामित्त-परियणाई सव्वमणिच्चं विणा धम्म // 733 // माया-पियरो भाया भज्जा पुत्ता य मित्त धणनिवहो / न य सरणं संसारे जीवा मुत्तु जिणवयणं // 734 // एगो बंधइ कम्मं, एगी तं चेव अणुहवइ जीवो। एगु च्चिय भमइ भवे, इय एगत्तं सरहुँ सम्म // 735 // अन्नो जीवो, अन्नं इमं सरीरं पि, बंधवा अवरे। इय अन्नत्तं चिंतसु गयसुकुमालो व्व धीर ! तुमं // 736 // जम्म-जर-मरण-धणनास-रोग-भय-सोग-पियविओगेहिं / परमत्थेण असारं संसारं जीव ! चिंतेसुं // 737 // मंस-ऽट्ठि-मेय-मिजा-पुरीस-वस-रुहिर-मुत्त-पित्तेहिं / सव्वं असुहसहावं उरलसरीरं विभावसु // 738 // माया य भवइ भज्जा, पिया य पुत्तो, दिओ वि मायंगो / राया वि हु किमिकीडो, लोयसहावं मुणसु एवं // 739 // अव्वय कसाय इंदिय किरिया जोगेहिं कम्ममासवइ / जीवो सययं तम्हा आसवदारे निरुब्भेहि // 740 // भावण समिइ परीसह चरित्त जइधम्म गुत्ति रूवमिणं / आसवदारपिहाणं संवरभावं सया सरसु // 741 // मुणिणो पुराणकम्मं खर्विति तवसा दुवालसविहेणं / . इय निज्जरणसरूवं चिंतसु नियमाणसे निच्चं // 742 // चिंतामणि व्व दुलहो जिणधम्मो जेहि कहवि संपत्तो / ते धन्ना इय भावसु उत्तमगुणभावणं सम्म 62 // 743 //