________________ // 720 // // 721 // // 722 // // 723 // // 724 // // 725 // जो संजओ वि एयासु अप्पसत्थासु वट्टइ कहंचि / सो तविहेसु गच्छइ सुरेसु भइओ चरणहीणो एयाओ भावणाओ भाविता देवदुग्गइं जंति / तत्तो वि चुया संता भमंति भवसायरमणंतं एयाओ विसेसेणं परिहरई चरणविग्घभूयाओ। एयनिरोहाओ च्चिय सम्मं चरणं च पाविति इह-परलोगाऽऽसंसप्पओग मरणं च जीवियासंसा / कामे भोगे य तहा पंचऽइयारे विवज्जिज्जा इह इहलोगाऽऽसंसा जं चक्कित्ताइरिद्धिपत्थणयं / परलोगाऽऽसंसा पुण जं इंदत्ताइअभिलासो विहियाणसणो खवंगो वियणं सोढुं अचायमाणो उ / सिग्धं मरणं पत्थेइ एस मरणे य आसंसा लोए पूर्व दट्ठण अप्पणो किज्जमाण तो चिंते / 'जीवामि जइ चिरं सुंदरं' ति इय जीवियाऽऽसंसा इह-परलोइयसद्दाइएसु विसएसु होइ जा मुच्छा / खवगस्स उत्तमढे पंचमओ एस अइयारो संलेहणाए सम्म अइयारे पंच वी परिहरिज्जा। खवगो विसुद्धभावो आराहणविज्जविग्घकरे एवं भावियचित्तो संथारवरम्मि सुविहिय ! 'सया वि / भावेहि भावणाओ बारस जिणवयणदिट्ठाओ समणेण सावएण व जाओ निच्चं पि भावणिज्जाओ / दढसंवेयकरीओ विसेसओ उत्तिमट्ठम्मि... पंढम अणिच्चभावं असरणयं एगयं च अन्नत्तं / संसारमसुहयं चिय विविहं लोगस्सहावं च // 726 // // 727 // // 728 // // 729 // // 730 // // 731 // .11