________________ न य परिहायइ कोई अत्थो मउयत्तणे पउत्तम्मि। इह य परत्त य लभई विणएण हु सव्वकल्लाणं . // 660 // जे मुद्धजणं परिवंचयंति बहुअलिय-कूड-कवडेहिं / अमर-नर-सिवसुहाणं अप्पा वि हु वंचिओ तेहिं // 661 // जइ वणिसुयाए दुक्खं लद्धं इक्कसि कयाए मायाए / तो ताण को विवागं जाणइ जे माइणो निच्चं ? // 662 / / कोहाइणो य सव्वे लोभाओ च्चिय जओ पयर्टेति / एसो च्चिय तो पढमं निग्गहियव्वो पयत्तेणं // 663 // न य विहवेणुवसमिओ लोभो सुर-मणुय-चक्कवट्टीहि / संतोसो च्चिय जम्हा लोभविसुच्छायणे मंतो // 664 // जह जह वड्ढइ विहवो तह तह लोभो विवड्ढए अहियं / देवा इत्थाऽऽहरणं कविलो वा खुड्डओ वा वि // 665 // सामण्णमणुचरंतस्स कसाया जस्स उक्कडा हुँति / / मन्नामि उच्छुपुर्फ व निष्फलं तस्स सामन्नं // 666 // जं अज्जियं चरितं देसूणाए य पुव्वकोडीए / तं पि कसाइयमित्तो हारेइ नरो मुहुत्तेणं // 667 // न हु तं कुणिज्ज सत्तू अग्गी वग्घो व किण्हसप्पो वा / जं कुणइ महादोसं निव्वुइविग्धं कसायरिऊ // 668 // जं पिच्छसि जियलोए चउगइसंसारसंभवं दुक्खं / तं जाण कसायफलं, सुक्खं पुण तज्जयस्स फलं // 669 // एसो सो परमत्थो एयं तत्तं तिलोयसारमिणं / सयलदुहकारणाणं विणिग्गहो जं कसायाणं . // 670 // खुहा पिवासा सी उण्हं दंसा-ऽचेला -ऽरइ-थिओ / .. चरिया निसीहिया सिज्जा अक्कोस वह जायणा . // 671 // પક