________________ चरउ तवं, धरउ वयं, सरउ गुरुं, करउ दुक्करं किरियं / कासकुसुमं व विहलं जइ नो जियरक्खणं कुणइ // 600 // नाऊण दुहमणंतं जिणोवएसाओ जीववहयाणं / हुज्ज अहिंसानिरओ जइ निव्वेओ भवदुहेसु // 601 // कोहेण व लोभेण व हासेण भएण वा वि तिविहेणं / सुहुमेयरं पि अलियं वज्जसु सावज्जसयमूलं // 602 // लोए वि अलियवाई वीससणिज्जो न होइ भुयगो व्व / पावइ अवनवायं, पियराण वि देइ उव्वेयं // 603 // आराहिज्जइ गुरु-देवयं व, जणणि व्व जणइ वीसंभं / पियबंधवु व्व तोसं अवितहवयणो जणइ लोए // 604 // मरणे वि समावडिए जंपंति न अन्नहा महासत्ता / जन्नफलं निवपुट्ठा जह कालगसूरिणो भयवं // 605 // पावस्साऽऽसवदारं असच्चवयणं भणंति हु जिणिंदा / कारण अपावो वि य मोसेण वसू गओ निरयं // 606 // सेलपुरिसो व्व मूया खलंतवयणा अय व्व जे केइ / तं पुव्वजम्मजंपियमिच्छावायस्स फलमेयं // 607 / / तम्हा इह-परलोए दुहाणि मुणिणा अणिच्छमाणेणं / उवओगो कायव्वो सया मुसावायविरईए // 608 // अवि दंतसोहणं पि हु परदव्वमदिनयं न गिव्हिज्जा। इह-परलोयगयाणं मूलं बहुदुक्खलक्खाणं // 609 // . अत्थम्मि हिए पुरिसो उम्मत्तो विगयचेयणो होइ।। मरई य सहक्कारं अत्थो जीयं खु पुरिसस्स - // 610 // . गिरि-गहण-विवर-सायर-समरेसु विसंति अत्थलोहिल्ला / पियबंधू वि जियं पि य पुरिसा पयहति धणहेउं // 611 // .. ua