________________ कम्ममसंखिज्जभवं खवेइ अणुसमयमेव आउत्तो / अन्नयरम्मि वि जोगे सज्झायम्मि विसेसेण // 588 // बारसविहम्मि वि तवे सऽभिंतरबाहिरे जिणक्खाए / न वि अत्थि न वि य होहिइ सज्झायसमं तवोकम्मं // 589 // उक्कोसो सज्झाओ चउदसपुव्वीण बारसंगाई। . तत्तो परिहाणीए जाव तयत्थो नमोक्कारो - // 590 // सज्झायं कुव्वंतो पंचिंदियसंवुडो तिगुत्तो य / भवइ य एगग्गमणो विणएण समाहिओ भिक्खू / // 591 / / जह जह सुयमोगाहइ अइसयरसपसरसंजुयमउव्वं / . तह तह पल्हाइ मणं नवनवसंवेगसद्धाए // 592 // सज्झायभावणाए य भाविया हुंति सव्वगुत्तीओ। गुत्तीहि भावियाहि य मरणे आराहओं होइ // 593 // एगिदिएसु पंचसु तसेसु कय-कारणा-ऽणुमइभेयं / संघट्टण परितावण विराहणं चयसु तिविहेणं // 594 // जइ मिच्छदिट्ठियाण वि जत्तो केसिंचि जीवरक्खाए। कह साहूहिं न एसो कायव्वो मुणियसारेहिं ? // 595 // किं सुरगिरिणो गरुयं? जलनिहिणो किं व हुज्ज गंभीरं ? / किं गयणाओ विसालं ? को य अहिंसासमो धम्मो ? // 596 // कल्लाणकोडिजणणी दुरंतदुरियारिवग्गनिट्ठवणी / संसारजलहितरणी इक्का सा होइ जीवदया // 597 // विउलं रज्जं रोगेहिं वज्जियं रूवमाउयं दीहं / अन्नं पि तं न सोक्खं जं जीवदयाए न हु सझं // 598 // जे पुण छज्जीववहं कुणंति अस्संजया निरणुकंपा / / ते दुहलक्खाभिहया भमंति संसारकंतारे // 599 //