________________ // 564 // सम्मं मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झ न केणइ। आसाओ वोसिरित्ताणं समाहिमणुपालए सव्वं चाऽऽहारविहिं सन्नाओ गारवे कसाए य। सव्वं चेव ममत्तं चयामि, सव्वं खमावेमि // 565 // हुज्जा इमम्मि समए उवक्कमो जीवियस्स जइ मज्झं / एयं पच्चक्खाणं विउला आराहणा होउ . // 566 // वित्थर-संखेवेण वि इत्तरसागारपच्चखाणमिणं / . आवकहभत्तचागाऽवसरे पासंगियं भणियं . // 567 // निज्जवओ आयरिओ संथारगयस्स देइ अणुसहूिँ। ... संवेयं निव्वेयं जणयंतो कन्नजावं से // 568 // मिच्छत्तपरिच्चायं सम्मत्तं निसेवणं च सज्झायं / पंचमहव्वयरक्खं मयनिग्गहणं सया कुणसु // 569 // इंदिय-कसायविजयं परीसहुवसग्गसहण-मपमायं / कुणसु रई दुविहतवे विहेसु रागाइपडिसेहं . // 570 // वज्जेसु नव नियाणे कंदप्पाईकुभावणा चयसु / पणवीसं संलेहणअइयारे पण वि परिहरसु // 571 // सुहभावणाओ बारस तह पणवीसं महव्वयाणं पि / भावेसु भावणाओ इय अणुसट्ठीए दाराई // 572 // परिहरसु तुमं सुपुरिस ! मिच्छं भवदुक्खमूलहेउमिणं / सम्मत्तराहणेणं तिविहं तिविहेण जाजीवं // 573 // अग्गि-विस-किण्हसप्पाइयाणि दोसं न तं करिज्जा हु। जं तिव्वं मिच्छत्तं जीवस्स कुणइ महादोसं // 574 // अग्गि-विस-किण्हसप्पाइयाणि दोसं करिति एगभवे / मिच्छत्तं पुण दोसं करेइ भवकोडिकोडीसु ' // 575 // 48