________________ 7 जनारचचारणा सम्म . // 543 // ' वोसिरिय पावठाणे अट्ठारस दोससंचयनिहाणे / अह सव्वदारसारं अणसणदारं पवज्जेइ // 540 // सीह व्व खवगसीहो सोडीरो अणसणं करेमाणो। निज्जामयसूरीणं सगग्गरो कुणइ किइकम्म // 541 // तो ते संघसमक्खं पच्चक्खाविति खवगमाहारं / . जाजीवं सागारं चउव्विहं वा वि तिविहं वा // 542 // भवचरिमं पच्चक्खामि चउविहं अहव तिविहमाहारं / आगारचउक्केणं अन्नत्थिच्चाइणा सम्म एयं किल सागारं, मयहरपभिईहिं वज्जियं इयरं / .. पाणाहारे कप्पइ, सुद्धोदगमेव से नवरं // 544 // अब्भंगाई सव्वं समाहिहेडं ति तत्थ न विरुद्धं / जेण समाही एत्थं सारो सुगईए हेउ त्ति // 545 // अह जइ सावगखवगो न समत्थो पावठाणवोसिरणे / ता न य पच्चक्खाई पावट्ठाणाणि सो नवरं // 546 // अणसणविहिं असेसं साहु व्व करेयऽणुव्वयाइं पुणो / वयउच्चारणदारे तेणं पच्चक्खियाइं पुरा // 547 // सागार निरागारं आवकहं अणसणं निहाणं व / रोरेण पाविऊणं, तिसिएण व पउमसरमहवा // 548 // पत्तं अपत्तपुव्वं, दुल्लहमेयं ति तिहुयणे सयले। चितंतो तह संसारियाण भावाण सव्वाणं // 549 // अथिरत्तं असुहत्तं भावितो नियसरीरनिरवेक्खो। परिहरियसयण-भिच्चो कयकिच्चो तत्थिमं भणइ // 550 // जं पि य इमं सरीरं इ8 वेसासियं पियं कंत। दइयं व नामधिज्जं सम्मयमणुमयमइमणुन्नं // 551 // 47