________________ खवगस्स निच्छयं जाणिऊण संघस्स तो निवेइत्ता / 'इच्छंति भणिय सुगुरू उठूई संघ-खवगजुओ // 516 // तत्तो संघो खवगो सुगुरू वि कुणंति काउसग्गं तु / 'आराहणपच्चइयं खवगस्स य निरुवसग्गत्थं' // 517 // पकरेमि काउसग्गं निरुवसगवत्तियाए सद्धाए। . मेहाए' इच्चाई भणिउं ठायंति उस्सग्गं / // 518 // पणवीसूसासमियं चउवीसथयं भणंति पारिता / उस्सग्गविही एसो अह सक्कथयविही इणमो // 519 // सुपसत्थदिसाभिमुहो खवगो पलियंकआसणगओ य / सिरसावत्तं काउं मुद्धाणे ठविय करकमलं // 520 // संवेगगग्गरगिरो य संघपच्चक्खमेव सक्कथयं / भणई 'नमोऽत्थु णं' जा 'संपत्ताणं' ति पज्जंतं // 521 // सक्कत्थयं भणित्ता 'अह सम्मं पावठाणवोसिरणं / काहामि' त्ति गुरूणं पाए नमिउं भणइ तत्तो // 522 // सव्वं पाणऽइवायं पच्चक्खामि त्ति जावजीवाए / एवं अट्ठारस वी उच्चरई, ताणि उ इमाणि // 523 // पढमं पावट्ठाणं पाणविणासो दुहाणमावासो / बीयं तु अलियवयणं आवयसयघणउदयगयणं . // 524 // तइयमदत्तादाणं पयडियनिस्सेसदोससंताणं / तुरियं पुणो असीलं गुणवणसइदहणदवकीलं // 525 // पंचमगं तु महिच्छा इह-परलोए वि जणियजणकिच्छा। छटुं तु होइ कोहो हयबोहो दंसियविरोहो // 526 // सत्तमगं पुण माणो वियलियविणयाइगुणगणट्ठाणो / ' अट्ठमगं पुण माया मोडियसरलत्तणच्छाया // 527 // 44