________________ पुरओ पक्खाऽऽसन्ने गंता चिट्ठण निसीयणाऽऽयमणे / आलोयण पडिसुणणे पुव्वालवणे य आलोए // 504 // तह उवदंस निमंतण खद्धा इयणे तहा अपडिसुणणे / खद्ध त्ति य तत्थगए किं तुम तज्जाय नो सुमणे // 505 // नो सरसि कहं छित्ता परिसं भित्ता अणुट्ठियाए कहे। संथारपायघट्टण चिट्ठच्च समासणे आवि // 506 // अहवा अरिहंताणं आसायण तह य सव्वसिद्धाणं / सूरीणुवज्झयाणं आसायण समण-समणीणं // 507 // सड्ढाणं सड्ढीणं देवाणं देवियाहिं सहियाणं / इह परलोयस्स तहा केवलिपन्नत्तधम्मस्स // 508 // ससुराऽऽसुर-नरलोयस्स वि सव्व-प्पाण-भूय-जीवाणं / कालस्स य सुत्तस्स य सुयदेवय वायणगुरूणं // 509 // एया एगुणवीसं पत्तेयाऽऽसायणा पडिक्कमिउं / . सेसा पडिक्कमेमि चउदस अह सुत्तविसयाओ. // 510 // जं वाविद्धं विच्चामेलिय हीणा -ऽहियऽक्खरं जं च। पय-विणय-जोग-घोसेहिं हीणयं सुट्ट दिन्नं च // 511 // दुपडिच्छियं अकाले सज्झाओ काले तह असज्झाओ / असज्झाए सज्झाओ सज्झाए तह असज्झाओ // 512 // आसायण तेत्तीसं एयाओ इत्थ अन्नजम्मम्मि / जाओ कह वि कयाओ पडिकमियाओ मए ताओ // 513 // इय गुरुगयआसायण पत्तेयासायणा य पडिकमिउं / अह आराहणहेउं काउस्सग्गं करे विहिणा // 514 // गुरुपयजुयं नमित्ता खवगो विन्नत्तियं कुणइ एवं / 'भयवं ! भत्तपरिनं करेमि तुब्भेहिऽणुनाओ' // 515 // 43