________________ // 480 // // 481 // // 482 // // 483 // // 484 // // 485 // पंचमहव्वयजुत्ता सुसाहुणो साहुणीओ सुचरित्ता / सम्मत्ताइगुणजुया सुसावया सावियाओ वि . एसो चउविहसंघो जिणिदआणारओ गुणमहग्यो / तित्थयराण वि पुज्जो सुर-असुर-नरिंदनमणिज्जो जे गुरुयकम्मजीवा संघं अवमाणयंति ते सययं / नरयाइदुहं दुसहं सहति संसारकंतारे संघपसायाओ जिया लहंति तित्थयर-गणहरत्ताणि / सुर-असुर-चक्कि-केसव-बलाण रिद्धी सिवसुहं च अप्पुव्वभकुंभो. सिवसुहसंपत्तिकप्पतरुकप्पो / अहिलसियकामधेणू अचिंतचिंतामणी संघो भवजलहिजाणवत्तं संघो, अपवग्गसिहरनिस्सेणी / करुणामयस्स जलही, परहो दुग्गइदुवारस्स संघो भवकंतारे सत्थाहो, गुणमणीण पवरनिही / जं अवरद्धो मोहा गुरुकम्मेणं पमाया वा अब्भहियजायहरिसो सिरि विरइय अंजलि कयपणामो। तं सव्वं अवराहं सम्मं संघं खमावेमि आयरिय उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुल गणे य / जे मे कया कसाया सव्वे तिविहेण खामेमि सव्वस्स समणसंघस्स भगवओ अंजलिं करिय सीसे / अवराहं खामेमी तस्स पसायाभिमुहचित्तो इय खामिऊण संघ, अहुणा पकरेइ जिणवराईणं / सव्वेसि खामणयं खवगो संवेगमावन्नो भरहेरवय-विदेहे-तीय-भविस्से य वट्टमाणे य / तित्थयरे खामेमि सगणहरे संघपरियरिए // 486 // // 487 // // 488 // // 489 // // 490 // // 491 // .. .. . 41