________________ परवसणे जो हरिसो अब्भक्खाणं तु जं मए दिन्नं / पेसुन्नं जं च कयं परस्स जा वंचणा विहिया // 432 // वीसत्थमारणं जं बाल-त्थी-ऽणाह-गब्भ-रिसिघायं / जंच कयं मूढेणं तमहं गरिहामि निस्सेसं // 433 // जं जाओ दुहहेऊ देसेसु अणारिएसु जीवाणं / परलोगनिप्पिवासो तं पि य गरिहामि भावेणं // 434 // खट्टिग-मच्छिय-वागुरिय-डुंब-मिच्छासु पावजाईसु / जाएण जिए वहिए आरियखित्ते वि खामेमि // 435 // वणदाह गामदाहं जणवयदाहं सराऽऽइसोसं च / काउमणेगे वहिया जे जीवा ते खमावेमि // 436 // कम्मण-वसिकरणुच्चाडणेहिं जोगेहिं मंत-तंतेहिं / साइणि-जोइणि-मुग्गय-भूयाईनिग्गहेहिं तहा // 437 // विज्जय-निमित्त-जोइस-कोउयकम्माइएहिं जे जीवा / दुहिया विहिया इहिं तेसु य सव्वेसु समभावो // 438 // जलजत्ताईमहयारंभेसुं थूलकम्मदाणेसुं। . जे वट्टतेण मए जीवा वहिया तए खामे // 439 // जे जाणमजाणं वा राग-द्दोसेहिं अहव मोहेणं / जं दुक्खविया जीवा खमंतु ते मज्झ सव्वे वि . // 440 // मणसा वा वयसा वा काएण व इहभवे य इयरे वा। संघट्टिया व परिताविया व उद्दाविया वा वि . // 441 // हसिया व तज्जिया वा अवमाणिय जे व दूमिया व मणे / कोहेण व माणेण व मायाए अहव लोभेणं // 442 // हासेण वा भएण व सोएण व दुट्टकम्मयाए वा / आलस्सेण य सहसागारेणं तह अणाभोगा // 443 // - 30