________________ जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तमट्ठकालम्मि / दुलहबोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च / // 216 // तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणब्भवलयाणं / मिच्छादसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च // 217 // न हु सुज्झई ससल्लो जह भणियं सासणे धुयरयाणं / उद्धरियसव्वसल्लो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसो // 218 // एवं सुगुरुसमीवे उद्धरियसल्लो महल्लसंवेगो / खवगो गुरुं नमित्ता विसुद्धभावो पुणो भणइ // 219 // भयवं ! भक्जलहीए दुहजलयरभीसणे महाघोरे / तारणतरीसमाणे महव्वए उक्खिव पुणो वि ... // 220 // इय खवगवयणमायन्निऊण सुगुरू अखंडचरणस्स / तस्सारोवइ विहिणा महव्वयाई, तओ खवगो // 221 // नवकारं भणिऊणं 'पढमे भंते ! महव्वए पाणा०' / इच्चाइ भणइ पढमं वयं तु जा बीयवेरमणं // 222 // पुणं सनमुक्कारं तं बिइयं तइयं पि वेलमुच्चरिउं / सेसे महव्वए वि य तओ मुसावायमाईए // 223 // निसिभोयणपज्जते अनमुक्कारे भणित्तु वेलतिगं / 'इच्चेइयाई' इच्चाइदंडयं भणइ तिक्खुत्तो // 224 // अह जइ खंडियचरणो नियगच्छगओ य तस्स उट्ठवणा / कीरइ, दिसिबंधो पुण पुव्विल्लो होइ उ पमाणं // 225 // परगच्छआगयस्स उ निरईयारस्स नेव उट्ठवणा / दिसिंबंधो कायव्वो, तह पज्जंते वयारोवो // 226 // पासत्थाईणं पुण भणिओ उट्ठावणाविही सव्वो / 'दिसिबंधतो नियमा, अह जइ सुस्सावगो कोई // 227 // - 10